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णंदिवद्धणे णामं छहं अज्झयणं
नंदिवर्द्धन नामक छळा अध्ययन विपाक सूत्र के पांचवें अध्ययन में एक हिंसक एवं मैथुन सेवी व्यक्ति के जीवन का परिचय देते हुए हिंसा एवं मैथुन के दुष्परिणामों का वर्णन करने के बाद सूत्रकार इस छठे अध्ययन में एक ऐसे ही अधमाधम व्यक्ति का जीवन परिचय दे रहे हैं जो राज्यसिंहासन के लोभ में अपने पूज्य पिता को मारने का निंदनीय षड्यंत्र रचता है। इस अध्ययन का प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
उत्क्षेप-प्रस्तावना जइ णं भंते!......छट्ठस्स उक्खेवो एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं महुरा णामं णयरी, भंडीरे उज्जाणे, सुदंसणे जक्खे, सिरिदामे राया, बंधुसिरी भारिया पुत्ते णंदिवद्धणे णा० कुमारे अहीण जाव जुवराया। तस्स णं सिरिदामस्स सुबंधू णामं अमच्चे होत्था सामदंड०। तस्स णं सुबंधुस्स अमच्चस्स बहुमित्तपुत्ते णामं दारए होत्था अहीण। तस्स णं सिरिदामस्स रण्णो चित्ते णामं अलंकारिए होत्था, सिरिदामस्स रण्णो चित्तं बहुविहं अलंकारियकम्मं करेमाणे सव्वट्ठाणेसु य सव्वभूमियासु य दिण्णवियारे यावि होत्था।।१०८॥
कठिन शब्दार्थ - अलंकारिए - अलंकारिक-नाई, अलंकारियकम्मं - अलंकारिक कर्म-हजामत, दिण्णवियारे - दत्तविचार-अप्रतिषिद्ध गमनागमन करने वाला।
भावार्थ - छठे अध्ययन के उत्क्षेप-प्रस्तावना की कल्पना पूर्व की भांति कर लेनी चाहिये। इस प्रकार निश्चय ही हे जम्बू! उस काल तथा उस समय में मथुरा नाम की नगरी थी। वहां भण्डीर नाम का उद्यान था। उसमें सुदर्शन नामक यक्ष का यक्षायतन था। वहां श्रीदाम नामक राजा राज्य करता था। उसकी बंधुश्री नाम की रानी थी। उनका सर्वांग संपूर्ण और परम सुंदर युवराज पद से अलंकृत नन्दीवर्धन नाम का पुत्र था।
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