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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
श्रीदाम राजा का साम, दाम, दण्ड, भेद नीति में निपुण सुबंधु नाम का एक मंत्री था। उस अमात्य-मंत्री का बहुमित्रापुत्र नामक एक बालक था जो कि सर्वांग सम्पन्न और रूपवान् था। उस श्रीदाम नरेश का चित्र नामक एक अलंकारिक-नाई था। वह राजा का अनेकविध आश्चर्यजनक अलंकारिक कर्म-क्षौरकर्म-हजामत करता हुआ राजाज्ञा से सर्व स्थानों में, सर्व भूमिकाओं में तथा अन्तःपुर में प्रतिबंध रहित गमनागमन करने वाला था।
विवेचन - छठे अध्ययन की प्रस्तावना इस प्रकार है - 'हे भगवन्! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक सूत्र के पांचवें अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) भाव फरमाया है तो हे भगवन्! यावत् मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के छठे अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है।'
जंबू स्वामी के इस प्रश्न के उत्तर में सुधर्मा स्वामी ने जो कुछ कहना प्रारंभ किया उसी को सूत्रकार ने ‘एवं खलू जंबू..इत्यादि पदों द्वारा अभिव्यक्त किया है जो भावार्थ से स्पष्ट है।
गौतम स्वामी की जिज्ञासा तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे परिसा णिग्गया रायावि णिग्गओ जाव परिसा पडिगया। - तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी जाव रायमग्गमोगाढे तहेव हत्थी आसे पुरिसे पासइ, तेसिं च णं पुरिसाणं मझगयं एगं पुरिसं पासइ जाव णरणारीसंपरिवुडं। ___ तए णं तं पुरिसं रायपुरिसा चच्चरंसि तत्तंसि अयोमयंसि समजोइभूयंसि सीहासणंसि णिवेसावेंति, तयाणंतरं च णं पुरिसाणं मज्झगयं बहुविहं अयकलसेहि तत्तेहिं समजोइभूएहिं अप्पेगइया तंबभरिएहि अप्पेगइया तउयभरिएहि अप्पेगइया सीसगभरिएहिं अप्पेगइया कलकलभरिएहिं अप्पेगइया खारतेल्लभरिएहिं महयामहया रायाभिसेएणं अभिसिंचति तयाणंतरं च णं तत्तं अयोमयं समजोइभूयं अयोमयसंडासएणं गहाय हारं पिणद्धति ॥१०॥
कठिन शब्दार्थ - अयोमयंसि - अयोमय-लोहमय, समजोइभूयंसि - अग्नि के समान देदीप्यमान-अग्नि जैसा लाल, णिसावेति - बैठा देते हैं, तत्तेहिं - तप्त-तपे हुए, अयकलसेहि
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