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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
भगवान् से समाधान हो जाने पर गौतम स्वामी को वृहस्पतिदत्त के आगामी भवों के विषय में जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई और भगवान् ने जो कुछ फरमाया उसका वर्णन प्रस्तुत सूत्र में किया गया है। उसकी आगामी भव यात्रा का वृत्तांत इस प्रकार है - हे गौतम! वृहस्पतिदत्त की पूर्ण आयु ६४ वर्ष की है। आज वह दिन के तीसरे भाग में शूली पर चढ़ाया जाएगा। उसमें मृत्यु प्राप्त होने पर वह पहली रत्नप्रभा नरक में नैरयिक रूप से उत्पन्न होगा। वहाँ की भवस्थिति पूर्ण कर मृगापुत्र के समान संसार भ्रमण करेगा अर्थात् नानाविध योनियों में गमनागमन करता हुआ पृथ्वीकाय में लाखों बार उत्पन्न होगा। वहाँ से निकल कर हस्तिनापुर में मृग की योनि में जन्म लेगा। वहाँ पर भी वागुरिकों-शिकारियों से वध को प्राप्त हो कर वह हस्तिनापुर नगर में ही एक प्रतिष्ठित कुल में उत्पन्न होगा। इस जन्म में उसे बोधिलाभ सम्यक्त्व प्राप्ति होगी
और तदनन्तर मृगापुत्र की तरह उत्तरोत्तर विकास करता हुआ अंत में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होकर सभी दुःखों का अंत करेगा यानी मोक्ष के शाश्वत सुखों को प्राप्त करेगा।
इस अध्ययन का निक्षेप-उपसंहार इस प्रकार है - 'हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक सूत्र के पांचवें अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादन किया है। इस प्रकार मैं कहता हूँ अर्थात् मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से जैसा सुना है वैसा तुम्हें सुनाया है। इसमें मेरी कोई कल्पना नहीं है।'
इस पांचवें अध्ययन की हित शिक्षाएं इस प्रकार हैं -
१. महेश्वर दत्त की तरह प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए पाप कर्मों का उपार्जन नहीं करना चाहिए। क्योंकि पाप कर्मों का फल भयंकर एवं दुःखदायी होता है।
___२. मित्र द्रोही - मित्र से द्रोह करने वाला, कृतघ्न - किये गये उपकार को न मानने वाला और विश्वास-घात करने वाला मर कर नरक में जाता है। महेश्वरदत्त के जीव ने वृहस्पतिदत्त पुरोहित के भव में मित्र पत्नी से अनुचित संबंध रख कर मित्र-द्रोह या विश्वासघात करके अपने जीवन को निकृष्ट कर्मों से दूषित बनाया तो उसे इस भवं और परभव में दुःखी बनना पड़ा। अतः सुज्ञजनों को ऐसे दुष्कर्मों से बचना चाहिए और अहिंसा सत्य आदि सदनुष्ठानों का सम्यक् आचरण कर अपना आत्म-कल्याण करना चाहिये।
॥ पांचवां अध्ययन समाप्त॥
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