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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध .........................................................
भगवान् का समाधान ... तयाणंतरं च णं अट्टहारं जाव पढें मउडं चिंता तहेव जाव वागरेइ-एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूहीवे दीवे भारहेवासे सीहपुरे णामं . णयरे होत्था रिद्ध।
तत्थ णं सीहपुरे पयरे सीहरहे णामं राया होत्था। तस्स णं सीहरहस्स. रण्णो दुज्जोहणे णामं चारगपालए होत्था अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे, तस्स णं दुज्जोहणस्स चारगपालगस्स इमेयारूवे चारगभंडे होत्था बहवे अयकुंडीओ . अप्पेगइयाओ तंबभरियाओ अप्पेगइयाओ तउयभरियाओ अप्पेगइयाओ सीसगभरियाओ अप्पेगइया कलकलभरियाओ अप्पेगइयाओ खारतेल्लभरियाओ अगणिकायंसि अद्दहियाओ चिटुंति॥११०॥
कठिन शब्दार्थ - अहहारं - अर्द्धहार को, पढें - मस्तक पर बांधने का पट्ट-वस्त्र अथवा मस्तक का भूषण विशेष, मउडं - मुकुट को, वागरेइ - प्रतिपादन करते हैं, चारगपालेचारक पाल अर्थात् कारागाररक्षक-जेलर, तंबभरियाओ - ताम्र से भरी हुई, अद्दहियाओ - : स्थापित की हुई।
भावार्थ - तदनन्तरं अर्द्धहार को यावत् मस्तक पर बांधने का पट्ट-वस्त्र अथवा मस्तक का भूषण विशेष और मुकुट को पहनाते हैं। यह देख गौतमस्वामी को विचार उत्पन्न हुआ यावत् गौतमस्वामी उस पुरुष के पूर्वजन्म संबंधी वृत्तांत को भगवान् से पूछते हैं और भगवान् उसके उत्तर में इस प्रकार प्रतिपादन करते हैं -
हे गौतम! उस काल तथा उस समय में इसी जंबूद्वीप नामक द्वीप के अंतर्गत भारत वर्ष में सिंहपुर नामक एक ऋद्धि समृद्धि से युक्त नगर था। वहां सिंहस्थ राजा राज्य करता था। उसके दुर्योधन नामक एक चारकपाल (कारागृहरक्षक-जेलर) था जो कि अधर्मी यावत् दुष्प्रत्यानंदकठिनाई से प्रसन्न होने वाला था। उस दुर्योधन चारकपाल के इस प्रकार चारक भाण्ड-कारागार संबंधी उपकरण थे। अनेक लोहमय कुंडियाँ थीं जिनमें से कितनीक ताम्र से भरी हुई थीं, कितनीक अपु से परिपूर्ण थीं, कई एक सीसक से पूर्ण, कितनीक चूर्णकादि मिश्रित जल से अथवा उबलते हुए उष्ण जल से भरी हुई थीं, कितनीक क्षारयुक्त तैल से परिपूर्ण थीं जो कि आग पर स्थापित की हुई रहती थीं।
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