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पांचवां अध्ययन - महेश्वरदत्त द्वारा पापाचार
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कठिन शब्दार्थ - सहजायए - सहजातकः-समान काल में उत्पन्न, सहवडियए - सहवर्द्धितकः-एक साथ वृद्धि को प्राप्त, सहपंसुकीलियए - सहपांसुक्रीडितः-साथ ही पांसुक्रीडाधूलिक्रीडा करते थे।
भावार्थ - तदनन्तर वह वृहस्पतिदत्त बालक पांच धायमाताओं से वृद्धि को प्राप्त करता तथा बाल भाव को त्याग कर युवावस्था को प्राप्त होता हुआ विज्ञात परिणतमात्र-जिसका विज्ञान परिपक्व अवस्था को प्राप्त हो चुका था। वह वृहस्पतिदत्त उदयनकुमार का प्रिय बाल मित्र था क्योंकि दोनों का जन्म एक साथ हुआ, दोनों एक साथ ही वृद्धि को प्राप्त हुए तथा साथ ही पांसुक्रीडा-बालक्रीडा किया करते थे।
तदनन्तर किसी अन्य समय महाराज शतानीक काल धर्म को प्राप्त हो गए तब वह उदयनकुमार अनेक राजा ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि के साथ रुदन करता हुआ, आक्रंदन करता हुआ, विलाप करता हुआ शतानीक राजा का महान् ऋद्धि तथा सत्कार समुदाय के साथ निस्सरण (अर्थी निकालने की क्रिया) तथा मृतक संबंधी क्रियाओं को करता है।
तए णं से बहवे राईसर जाव सत्थवाहप्पभियओ उदायणं कुमारं महया महया रायाभिसेएणं अभिसिंचंति। तए णं से उदायणे कुमारे राया जाए महया। तए णं से बहस्सइदत्ते दारए उदायणस्स रण्णो पुरोहियकम्मं करेमाणे सव्वट्ठाणेसु सव्वभूमियासु अंतेउरे य दिण्णवियारे जाए यावि होत्था।
तए णं से बहस्सइदत्ते पुरोहिए उदायणस्स रण्णो अंतेउरंसि वेलासु य अवेलासु य काले य अकाले य राओ य वियाले य पविसमाणे अण्णया कयाइ पउमावईए देवीए सद्धिं संपलग्गे यावि होत्था पउमावईए देवीए सद्धिं उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ॥६०५॥
कठिन शब्दार्थ - रायाभिसेएणं - राजा योग्य अभिषेक से, अभिसिंचंति - अभिषिक्त करते हैं, पुरोहियकम्मे - पुरोहित कर्म, सव्वट्ठाणेसु - सर्व स्थानों में, सव्व भूमियासु - सभी भूमिकाओं में, दिण्णवियारे यावि - दत्त विचार-अप्रतिबद्ध गमनागमन करने वाला, वेलासु- वेला-उचित अवसर अर्थात् ठीक समय पर, अवेलासु - अवेला-अनवसर-बेमौके, वियाले - विकाल-सायंकाल में, संपलग्गे - संप्रलग्न-अनुचित संबंध करने वाला।
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