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तृतीय अध्ययन - राजा से निवेदन
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कुछ समय बाद जब विजय सेनापति का स्वर्गवास हो गया तो पांच सौ चोरों ने मिलकर उसे पिता के स्थान पर स्थापित कर दिया तब से कुमार अभग्नसेन चोरसेनापति के नाम से विख्यात हो गया और वह उस चोरपल्ली का शासन करने लगा।
अभग्नसेन के दुष्कृत्य तए णं ते जाणवया पुरिसा अभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा बहूगामघायावणाहिं ताविया समाणा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अभग्गसेणे चोरसेणावई पुरिमतालस्स णयरस्स उत्तरिल्लं जणवयं बहहिं गामघाएहिं जाव णिद्धणं करेमाणे विहरइ, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! पुरिमताले णयरे महाबलस्स रण्णो एयमटुं विण्णवित्तए॥७६॥ ___ कठिन शब्दार्थ - जाणवया - जनपद देश में रहने वाले, बहूगामघायावणाहिं - बहुत से ग्रामों के घात (विनाश) से, ताविया - संतप्त-दुःखी, गामघाएहिं - ग्रामों के विनाश से, णिद्धणे - निर्धन, सेयं - श्रेयस्कर, विण्णवित्तए - विदित करें-अवगत करें।
भावार्थ - तदनन्तर अभग्नसेन नामक चोर सेनापति के द्वारा बहुत से गांवों से संतप्त दुःखी हुए उस देश के लोगों ने एक दूसरे को बुला कर इस प्रकार कहा - 'हे देवानुप्रियो! चोर सेनापति अभग्नसेन पुरिमताल नगर के उत्तर दिशा के बहुत से गांवों का विनाश करके वहाँ के लोगों को, धन धान्यादि से शून्य करता हुआ विचर रहा है इसलिए हे देवानुप्रिये! हमारे लिए यह श्रेयस्कर-कल्याणकारी है कि हम पुरिमताल नगर में महाबल राजा को इस बात से विदित करेंअवगत करें।
राजा से निवेदन तए णं ते जाणवया पुरिसा एयमढें अण्णमण्णेणं पडिसुणेति पडिसुणेत्ता महत्थं महग्यं महरिहं रायारिहं पाहुडं गिण्हेंति गिण्हेत्ता जेणेव पुरिमताले णयरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता जेणेव महाबले राया तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता महाबलस्स रण्णो तं महत्थं जाव पाहुडं उवणेति उवणेत्ता करयल....अंजलिं कटु महाबलं रायं एवं वयासी-एवं खलु सामी! सालाडवीए चोरपल्लीए
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