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तृतीय अध्ययन - अभग्नसेन की योजना
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चोरसएहिं सद्धिं अल्लं चम्मं दुरुहइ दुरुहित्ता संणद्धबद्ध जाव पहरणेहिं मग्गइएहिं जाव रवेणं पच्चावरणहकालसमयंसि सालाडवीओ चोरपल्लीओ णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता विसमदुग्गगहणं ठिए गहियभत्तपाणे दंडं पडिवालेमाणे चिट्ठ॥०॥
कठिन शब्दार्थ - पडिसेहित्तए - निषिद्ध करना-रोक देना, भोयणमंडवंसि - भोजन मंडप में, आयंते - आचमन किया, चोक्खे - लेप आदि को दूर करके शुद्धि की, परमसूइभूएपरमशूचिभूत-परम शुद्ध, अल्लं - आर्द्र-गीले, चम्मं - चर्म (चमड़े) पर, पच्चावरण्हकालसमयंसि- मध्याह्न काल में, विसमदुग्गगहणं - विषम-ऊंचा नीचा दुर्ग-जिसमें कठिनता से प्रवेश किया जाए ऐसे गहन-वृक्ष वन जिसमें वृक्षों का आधिक्य हो, ठिए - ठहरा, गहियभत्तपाणे - भक्त पानादि खाद्यसामग्री को साथ लिए हुए, पडिवालेमाणे - प्रतीक्षा करता हुआ, चिट्ठइ - ठहरता है।
भावार्थ - तदनन्तर अभग्नसेन चोर सेनापति ने अपने गुप्तचरों की बात को सुन कर तथा अवधारण कर पांच सौ चोरों को बुलाया और बुला कर इस प्रकार कहा - हे देवानुप्रियो! पुरिमताल मगर के राजा महाबल ने आज्ञा दी है कि यावत् दण्डनायक ने शालाटवी चोरपल्ली पर आक्रमण करने तथा मुझे पकड़ने को वहाँ अर्थात् चोर पल्ली में जाने का निश्चय कर लिया है अतः उस दण्डनायक को शालाटवी चोरपल्ली तक पहुंचने से पहले ही रास्ते में रोक देना हमारे लिए उचित प्रतीत होता है। अभग्नसेन के इस परामर्श को चोरों ने 'तथेत्ति' - बहुत ठीक है ऐसा ही होना चाहिए, ऐसा कह कर स्वीकार किया। तत्पश्चात् अभग्नसेन चोर सेनापति ने विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम वस्तुओं को तैयार कराया तथा पांच सौ चोरों के साथ स्नान से निवृत्त हो कर दुःस्वप्न आदि के फल को विफल करने के लिए मस्तक पर तिलक तथा अन्य मांगलिक कृत्य करके भोजन शाला में उस विपुल अशनादि तथा पांच प्रकार की मदिराओं का यथारुचि आस्वादन, विस्वादन आदि करता हुआ विहरण करने लगा। ___ भोजन के बाद उचित स्थान पर आकर आचमन किया और मुख के लेपादि को दूर कर, परम शूचिभूत हो कर पांच सौ चोरों के साथ आई चर्म पर आरोहण किया। तदनन्तर दृढ़ बंधनों से बंधे हुए और लोहमय कसूलक आदि से युक्त कवच को धारण करके यावत् आयुधों और प्रहरणों से सुसज्जित हो कर हाथों में ढाले बांध कर यावत् महान् उत्कृष्ट और सिंहनाद आदि के शब्दों द्वारा समुद्र 'शब्द को प्राप्त हुए के समान गगन मंडल को शब्दायमान करते हुए
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