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चतुर्थ अध्ययन - अपराध की सजा
१०६ ........................................................... गिण्हावेत्ता अट्ठि जावः महियं करेइ, करेत्ता अवओडयबंधणं करेइ, करेत्ता जेणेव महचंदे राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल जाव एवं वयासी-एवं खलु सामी! सगडे दारए ममं अंतेउरंसि अवरद्धे॥६५॥
. कठिन शब्दार्थ - अण्णत्थ - अन्यत्र, कत्थइ - कहीं पर भी, रहस्सियं - गुप्त रूप से, मणुस्स वग्गुराए - मनुष्य वागुरा-मनुष्य समुदाय से, परिक्खित्ते - परिवेष्टित हुआ, णिडाले - मस्तक पर, अंतेउरंसि - अन्तःपुर-रनिवास में, अवरुद्ध - अपराध किया है। ____ भावार्थ - तदनन्तर वह शकटकुमार सुदर्शना के घर से मंत्री के द्वारा निकाले जाने पर अन्यत्र कहीं भी स्मृति, रति और धृति को प्राप्त न करता हुआ किसी अन्य समय अवसर पाकर वह गुप्त रूप से सुदर्शना के घर पहुँच गया और सुदर्शना के साथ उदार-प्रधान कामभोगों को 'भोगता हुआ सानंद समय व्यतीत करने लगा। - इधर एक दिन स्नान कर और सब प्रकार के अलंकारों-आभूषणों से विभूषित होकर अनेक
मनुष्यों से परिवेष्टित हुआ सुषेण मंत्री सुदर्शना के घर पर आया, आकर सुदर्शना के साथ यथा रुचि कामभोगों का उपभोग करते हुए उसने शकट कुमार को देखा और देख कर वह क्रोध के मारे लाल पीला हो, दांत पीसता हुआ मस्तक पर तीन सल वाली भृकुटि चढ़ाता है और शकटकुमार को अपने पुरुषों से पकड़वा कर यष्टि से यावत् उसको मथित-अत्यंत ताड़ित करता है और अवकोटक बंधन को बांध कर जहाँ पर महाचन्द्र राजा था वहाँ ले जाता है। ले जाकर महाचन्द्र नरेश से दोनों हाथ जोड़ कर इस प्रकार कहता है - 'हे स्वामिन्! इस शकरटकुमार ने मेरे अंत:पुर में प्रवेश करने का अपराध किया है।'
अपराध की सजा तए णं से महचंदे राया सुसेणं अमच्चं एवं वयासी-तुमं चेव णं देवाणुप्पिया! सगडस्स दारगस्स दंडं णिवत्तेहि। तए णं से सुसेणे अमच्चे महचंदेणं रण्णा अन्भणुण्णाए समाणे सगडं दारयं सुदरिसणं च गणियं एएणं विहाणेणं वझं आणवेइ। . तं एवं खलु गोयमा! सगडे दारए पुरापोराणाणं.......पच्चणुभवमाणे विहरइ ॥६॥
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