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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
भावार्थ - तदनन्तर महाचन्द्र राजा ने सुषेण अमात्य को इस प्रकार कहा - 'हे देवानुप्रिय! तुम ही शकटकुमार को दण्ड दे डालो।' तत्पश्चात् महाचन्द्र राजा से आज्ञा प्राप्त कर सुषेण मंत्री शकटकुमार और सुदर्शना गणिका को इस (पूर्वोक्त) विधान-प्रकार से मारा जाएं, ऐसी आज्ञा देता है।
इस प्रकार निश्चय ही हे गौतम! शकट कुमार बालक पूर्वकृत पुरातन तथा दुश्चीर्ण-दुष्टता से किये गये यावत् कर्मों का अनुभव करता हुआ समय व्यतीत कर रहा है। ___विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में शकट कुमार के विषय में पूछे गये प्रश्न का समाधान करते हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी से कहा कि - हे गौतम! छण्णिक छागलिक का जीव अपने पूर्वोपार्जित अशुभ कर्मों का फल भोगने के लिए चौथी नरक में गया और वहाँ भीषण नारकीय यातनाएं भोग कर शकटकुमार के रूप में जन्म लेता है और वहाँ पर भी उसकी ऐसी दुर्दशा का कारण उसके पूर्वोपार्जित. अशुभ कर्म ही है।
श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से शकटकुमार के पूर्वभव का वृत्तांत सुन लेने के पश्चात् गौतम स्वामी को उसके आगामी भवों को जानने की जिज्ञासा हुई अतः वे भगवान् से इस प्रकार पूछते हैं -
आगामी भव-पृच्छासगडे णं भंते! वारए कालगए कहिं गच्छिहिड? कहिं उववज्जिहिइ?
सगडे णं दारए गोयमा! सत्तावण्णं वासाइं परमाउयं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे एगं महं अयोमयं तत्तं समजोइभूयं इत्थिपडिमं अवयासाविए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववज्जिहिइ।.
से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता रायगिहे णयरे मातंगकुलंसि जमलत्ताए (जुगलत्ताए) पच्चायाहिइ। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णिव्वत्तबारसगस्स इमं एयारूवं गोण्णं णामधेनं करिस्संति। तं होउ णं दारए सगडे णामेणं होउ णं दारिया सुदरिसणा णामेणं। तए णं से सगडे दारए उम्मुक्कबालभावे
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