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विपाक सूत्र - प्रथम श्रुतस्कन्ध
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है। उसका शेष जीवन उज्झितक कुमार के जीवन के समान समझ लेना चाहिये। सुभद्र सार्थवाह लवण समुद्र में काल को प्राप्त हुआ तथा शकट कुमार की माता भी मृत्यु को प्राप्त हो गयी थी । वह शकटकुमार भी घर से निकाल दिया गया ।
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तए णं से सगडे दारए सयाओ गिहाओ णिच्छूढे समाणे सिंघाडग.... तहेव जाव सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं संपलग्गे यावि होत्था । तए णं से सुसेणे अमच्चे तं सगडं दारगं अण्णया कयाइ सुदरिसणाए गणियाए गिहाओ णिच्छुभावेइ णिच्छुभावेत्ता सुदरिसणियं गणियं अब्भिंतरियं ठावेइ ठावेत्ता सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ ॥ ६४ ॥
भावार्थ - तदनन्तर अपने घर से निकाले जाने पर शकटकुमार साहंजनी नगरी के श्रृंगाटक त्रिकोण मार्ग आदि स्थानों में घूमता हुआ यावत् किसी समय सुदर्शना गणिका के साथ उसकी M गाढ प्रीति हो गयी।
तदनन्तर अमात्य सुषेण किसी अन्य समय उस शकट कुमार को सुदर्शना गणिका के घर से निकलवा देता है और सुदर्शना गणिका को अपने घर में स्थापित कर लेता है- रख लेता है तथा सुदर्शना गणिका के साथ उदार प्रधान मनुष्य संबंधी बिषय भोगों का उपभोग करता हुआ समय व्यतीत करता है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में छण्णिक छागलिक के जीव का सुभद्रा के गर्भ में आने, उसके जन्म लेने पर शकट कुमार नाम से प्रसिद्ध होने, माता-पिता के स्वर्गवास एवं घर से निकालने, सुदर्शना गणिका का संग मिलने तथा वहाँ से निकाले जाने का विस्तार से वर्णन किया गया है।
तएां से सगडे दारए सुदरिसणाए गिहाओ णिच्छूढे समाणे अण्णत्थ कत्थइ सुई वा.. . अलभ० अण्णया कयाइ रहस्सियं सुदरिसणा-गेहं अणुप्पविसइ अणुप्पविसित्ता सुदरिसणाए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोग भोगाई भुंजमाणे विहरइ । इमं च णं सुसेणे अमंच्चे पहाए जाव विभूसिए मणुस्सवग्गुराए जेणेव सुदरसणाए गणियाए गेहे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सगडं वारयं सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुते जाव मिसिमिसेमाणे तिबलियं भिउडिं णिडाले साहद्दु सगडं दारयं पुरिसेहिं गिण्हावेड़
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