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चतुर्थ अध्ययन - आगामी भव-पृच्छा
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विण्णयपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते भविस्सइ। तए णं सा सुदरिसणावि दारिया उम्मुक्कबालभावा विण्णयपरिणयमेत्ता जोव्वणगमणुप्पत्ता रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा यावि भविस्सइ॥७॥
कठिन शब्दार्थ - समजोइभूयं - अग्नि के समान देदीप्यमान, इत्थीपडिमं - स्त्री की प्रतिमा से, अवयासाविए - अवयासावित-आलिङ्गित, मातंगकुलंसि - मातंगकुल में-चांडाल कुल में, जमलत्ताए - युगल रूप से।
भावार्थ - हे भगवन्! शकटकुमार बालक यहाँ से काल करके कहां जायगा? कहां उत्पन्न होगा?
हे गौतम! शकटकुमार बालक ५७ वर्ष की परम आयु को भोग कर आज ही तीसरा भाग शेष रहे दिन में एक महान् लोहमय तपी हुई अग्नि के समान देदीप्यमान स्त्री प्रतिमा से आलिंगित कराया हुआ मृत्यु समय में काल करके रत्नप्रभा नामक प्रथम पृथ्वी में नैरयिक रूप से उत्पन्न होगा। ... वहाँ से निकल कर सीधा राजगृह नगर में मातंग-चांडाल कुल में युगल रूप से उत्पन्न होगा। उस युगल के माता-पिता बारहवें दिन उस बालक का शकट कुमार और उस बालिका का सुदर्शना, इस प्रकार नामकरण करेंगे। शकटकुमार बाल्यभाव को त्याग कर विशिष्ट ज्ञान तथा बुद्धि आदि की परिपक्वता को प्राप्त करता हुआ यौवन को प्राप्त करेगा। सुदर्शना भी बालभाव को त्याग कर विशिष्ट ज्ञान तथा बुद्धि आदि की परिपक्वता को प्राप्त करती हुई युवावस्था को प्राप्त होगी। वह रूप में, यौवन में और लावण्य में उत्कृष्ट (उत्तम) एवं उत्कृष्ट शरीरं वाली होगी।
तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे सुदरिसणाए भइणीए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरिसइ। तए णं से सगडे दारए अण्णया कयाई सयमेव कूडग्गाहित्तं उवसंपज्जित्ताणं विहरिस्सइ। तए णं से सगडे दारए कूडग्गाहे भविस्सइ अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे एयकम्मे० सुबहुं पावकम्मं जाव समज्जिणित्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववण्णे।
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