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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
१. जो लोग अण्डों में जीव नहीं मानते हैं उन्हें प्रस्तुत अध्ययन में वर्णित निर्णय अण्डवाणिज के जीवन वृत्तांत से समझ लेना चाहिए कि अण्डा मांस है और उसमें भी हमारी तरह जीव है क्योंकि दशवैकालिक सूत्र के चौथे अध्ययन में जहाँ त्रस प्राणियों का वर्णन किया है वहाँ अण्डज को त्रस प्राणी माना है। अण्डे से पैदा होने वाले पक्षी, मछली आदि प्राणी अण्डज कहलाते हैं। अतः अण्डों को नष्ट कर देना या खा जाना या क्रय विक्रय करने का अर्थ है प्राणियों के जीवन को लूट लेना। किसी के जीवन को लूट लेना पाप है। यही कारण है कि अभग्नसेन के जीव को निर्णय अण्डवाणिज के भव में किये गये अण्डों के भक्षण एवं उनके अनार्य एवं अधमपूर्ण व्यवसाय के कारण ही सात सागरोपम तक नरक के भीषण दुःखों को भोगना पड़ा। इसलिए सुखाभिलाषी प्राणियों को अण्डों के पाप पूर्ण भक्षण एवं उनके हिंसक और अनार्य व्यवसाय से सदैव बचना चाहिये। . २. धन, सत्ता आदि के अहंकार में जो अज्ञानी जीव पाप कर्मों का आचरण करते हैं और पाप करके खुशियों मनाते हैं उन्हें अभग्नसेन चोर सेनापति की तरह पाप कर्मों के दुःखद परिणाम को भुगतना पड़ता है अतः पाप कर्मों से बचते रहना चाहिए।
॥ तृतीय अध्ययन समाप्त॥
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