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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
है। अहो! यह कितनी कर्मजन्य विडम्बना है? इस प्रकार चिंतन करते हुए गौतमस्वामी देवरमण उद्यान में आये, आकर प्रभु को वंदन नमस्कार किया और राजमार्ग के दृश्य का सारा वृत्तांत कह सुनाया।
तदनन्तर उस पुरुष के इस प्रकार दुःख भोगने का कारण जानने की इच्छा से गौतमस्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से विनम्रता पूर्वक निवेदन किया कि - 'हे भगवन्! यह पुरुष पूर्व भव में कौन था? और उसने पूर्वजन्म में ऐसा कौनसा कर्म किया जिसके फलस्वरूप उसे इस प्रकार के कष्टों को सहन करना पड़ रहा है?' . .. गौतम स्वामी के इस प्रश्न के उत्तर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने जो कुछ फरमाया, '' वह इस प्रकार है -
पूर्वभव वर्णन एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूद्दीवे दीवे भारहें वासे छगलपुरे णामं णयरे होत्था। तत्थ णं सीहगिरी णामं राया होत्था महया०। तत्थ णं छगलपुरे णयरे छणिए णामं छागलिए परिवसइ अड्डे० अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे॥१०॥ ___ कठिन शब्दार्थ - छागलिए - छागलिक-छागों-बकरों के मांस से आजीविका करने वाला वधिक-कसाई, दुप्पडियाणंदे - दुष्प्रत्यानन्द-बड़ी कठिनाई से प्रसन्न होने वाला। .
भावार्थ - हे गौतम! उस काल तथा उस समय में इसी जंबू नामक द्वीप के अंतर्गत भारतवर्ष में छगलपुर नाम का एक नगर था। वहां सिंहगिरि नामक राजा राज्य करता था जो कि हिमालय आदि पर्वतों के समान महान् था। उस नगर में छण्णिक नामक एक छागलिक-छागादि के मांस का व्यापार करने वाला वधिक रहता था जो कि धनाढ्य, अधर्मी यावत् दुष्प्रत्यानंदबड़ी कठिनाई से प्रसन्न होने वाला था।
छण्णिक छागलिक के हिंसक कृत्य तस्स णं छणियस्स छागलियस्स बहवे अयाण य एलयाण य रोज्झाण य वसभाण य ससयाण य सूयराण य पसयाण य सिंघाण य हरिणाण य मयूराण
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