________________
तृतीय अध्ययन - आगामी भव . ........................................................... रूप से - जिसकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है, उत्पन्न होगा। वहाँ से-नरक से व्यवधान रहित निकल कर वह इसी प्रकार संसार परिभ्रमण करता हुआ जैसे प्रथम अध्ययन में मृगापुत्र का वर्णन किया है यावत् पृथ्वीकाय में लाखों बार उत्पन्न होगा। ___ वहाँ से निकल कर वाराणसी (बनारस) नगरी में शूकर के रूप में उत्पन्न होगा, वहाँ पर शौकरिकों-शूकर के शिकारियों द्वारा जीवन से रहित किया हुआ उसी बनारस नगरी के श्रेष्ठि कुल में पुत्र रूप से उत्पन्न होगा। वहाँ बालभाव को त्याग कर युवावस्था को प्राप्त होता हुआ जिस प्रकार प्रथम अध्ययन में प्रतिपादन किया गया उसी प्रकार यावत् जन्म मरण का अंत करेगा-निर्वाण पद को प्राप्त करेगा। निक्षेप-उपसंहार पूर्ववत् समझ लेना चाहिये।
विवेचन - गौतम स्वामी की जिज्ञासा का समाधान करते हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने फरमाया कि - अभग्नसेन चोर सेनापति कुल ३७ वर्ष की आयु भोग कर शूली के द्वारा मृत्यु को प्राप्त कर पूर्वकृत दुष्कर्मों से रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में उत्पन्न होगा। नरक में भी उन नैरयिकों में उत्पन्न होगा, जिनकी उत्कृष्ट आयु एक सागरोपम की है। नरक में यह नानाविध यातनाओं का अनुभव करेगा। आगे के संसार भ्रमण के लिए सूत्रकार ने फरमाया - “एवं संसारो जहा पढमे" अर्थात् जैसे कि प्रथम अध्ययन में मृगापुत्र का संसार भ्रमण का कथन किया है ठीक उसी प्रकार पृथ्वीकायोत्पत्ति पर्यन्त अभग्नसेन चोर सेनापति के जीव का भी संसार परिभ्रमण समझ लेना चाहिये। दोनों में विशेष अंतर यह है कि मृगापुत्र का जीव नरक से निकल कर प्रतिष्ठानपुर में गो रूप से उत्पन्न होगा जबकि अभग्नसेन का जीव बनारस नगरी में शूकर रूप से जन्म लेगा और शिकारियों के द्वारा मारा जाकर बनारस नगरी में ही एक प्रतिष्ठित कुल में पुत्र रूप से उत्पन्न होगा। युवावस्था में संयमशील मुनि की सत्संगति से वह मानव जीवन के महत्त्व को समझ कर दीक्षा अंगीकार करेगा। संयम का यथाविधि पालन कर प्रथम देवलोक में देवरूप से उत्पन्न होगा। वहाँ से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा। वहाँ युवावस्था में संयम अंगीकार करेगा और सकल कर्मों का क्षय कर निर्वाण पद को प्राप्त करेगा।
. इस अध्ययन का उपसंहार करते हुए सुधर्मा स्वामी फरमाते हैं कि - हे जम्बू! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के तीसरे अध्ययन का यह पूर्वोक्त अर्थ प्रतिपादन किया है। हे जम्बू! जैसा मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से सुना है वैसा ही तुझे कहा है। मैंने अपनी तरफ से कुछ नहीं कहा है।
प्रस्तुत तीसरे अध्ययन की विशिष्ट शिक्षाएं इस प्रकार है -
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org