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तृतीय अध्ययन - अभग्नसेन बंदी बना
अशनादिक सामग्री तैयार कराओ। तैयार करा कर उस विपुल अशनादिक और सुरादिक पांच प्रकार के मद्यों को तथा अनेकविध पुष्प, वस्त्र, सुगंधित द्रव्य, माला तथा अलंकारादि को अभग्नसेन चोर सेनापति को कूटाकारशाला में पहुँचाओ । तदनन्तर वे कौटुम्बिक पुरुष दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके यावत् उन सब पदार्थों को वहाँ पहुँचा देते हैं । तब वह अभग्नसेन चोर सेनापति अनेक मित्र आदि के साथ संपरिवृत्त स्नान किये हुए संपूर्ण अलंकारों से विभूषित हुआ उस विपुल अशनादिक सुरादिक-पांच प्रकार के मद्यों का आस्वादन विस्वादन आदि करता हुआ प्रमत्त होकर विचरण करता है।
अभग्नसेन बंदी बना
तए णं से महाबले राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीगच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! पुरिमतालस्स णयरस्स दुवाराई पिहेह पित्ता अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवगाहं गिण्हह गिव्हित्ता ममं उवणेह । तए णं ते . कोडुंबियपुरिसा करयल जाव पडिसुर्णेति पडिसुणंत्ता पुरिमतालस्स णयरस्स दुवाराइं पिहेंति अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवगाहं गिण्हंति गिण्हित्ता महाबलस्स रण्णो उवर्णेति । तए णं से महाबले राया अभग्गसेणं चोरसेणावइं एएणं विहाणेणं वझं आणवे ।
एवं खलु गोयमा ! अभग्गसेणे चोरसेणावई पुरापोराणाणं जाव विहरइ ॥ ८५॥ कठिन शब्दार्थ - दुवाराई द्वारों को, पिहेइ - बंद कर दो, वज्झं ऐसी, आणवेइ - आज्ञा देता है।
वध्य-मारा जाए
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भावार्थ - तदनन्तर महाबल राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुला कर इस प्रकार कहा हे देवानुप्रियो ! तुम जाओ और पुरिमताल नगर के द्वारों को बन्द कर दो, बंद करके अभग्नसेन चोर सेनापति को जीते जी पकड़ लो, पकड़ कर मेरे सामने उपस्थित करो । तत्पश्चात् कौटुम्बिक पुरुष दोनों हाथों को जोड़ यावत् राजा के उक्त आदेश को स्वीकार करते हैं और पुरिमताल नगर के द्वारों को बंद कर देते हैं तथा अभग्नसेन चोर सेनापति को जीते जी पकड़ कर महाबल राजा के पास उपस्थित कर देते हैं। तदनन्तर महाबल नरेश अभग्नसेन चोर सेनापति को इस प्रकार से- 'यह मारा जाए' - ऐसी आज्ञा प्रदान करते हैं। -
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