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तृतीय अध्ययन - गुप्तचरों की सूचना .......................................................... सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! सालाडविं चोरपल्लिं विलुपाहि विलुपित्ता अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवग्गाहं गिण्हाहि गेण्हित्ता ममं उवणेहि। तए णं से दंडे तहत्ति एयमढें पडिसुणेइ। तए णं से दंडे बहूहिं पुरिसेहिं संणद्धबद्ध जाव पहरणेहिं सद्धिं संपरिवुडे मग्गइएहिं फलएहिं जाव छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं महया जाव उक्किट्ठ जाव करेमाणे पुरिमतालं णयरं मझमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छि त्ता जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥७॥
कठिन शब्दार्थ - आसुरुत्ते - आशुरुप्त-शीघ्र क्रोध से परिपूर्ण हुआ, मिसिमिसिमाणेमिसमिस करता हुआ-दांत पीसता हुआ, तिवलियं भिउडि - त्रिवलिका-तीन रेखाओं से युक्त भृकुटि को, णिडाले - मस्तक पर, जीवग्गाहं - जीते जी, मग्इएहिं - हाथ में बांधी हुई। -- भावार्थ - तदनन्तर महाबल राजा उन देश में रहने वाले पुरुषों के पास से इस बात को सुनकर तथा अवधारण कर क्रोध से तमतमा उठा, क्रोधातुर होने के कारण मिसमिस करता हुआ-दांत पीसता हुआ माथे पर तिउडी चढा कर दंडनायक कोतवाल को बुलाता है और बुला कर कहता है कि हे देवानुप्रिय! तुम जाओ और जा कर शालाटवी चोरपल्ली को नष्ट कर दो, लूट लो, लूट कर अभग्नसेनापति को जीते जी पकड़ कर मेरे सामने उपस्थित करो। ____दण्डनायक महाबल नरेश की इस आज्ञा को विनयपूर्वक स्वीकार करता हुआ दृढ़ बंधनों से बंधे हुए और लोहमय कसूलक आदि से युक्त कवच को धारण कर यावत् आयुधों और प्रहरणों से युक्त अनेक पुरुषों को साथ लेकर हाथों में ढाल बांधे हुए यावत् क्षिप्रकूर्य नामक वाद्य को बजाने से और महान् उत्कृष्ट आनंदमय महाध्वनि तथा सिंहनाद आदि शब्दों द्वारा आकाश को शब्दायमान करता हुआ पुरिमताल नगर के मध्य में से निकल कर जिधर शालाटवी चोरपल्ली थी उसी तरफ जाने का निश्चय किया।
.. गुप्तचरों की सूचना .. तए णं तस्स अभग्गसेणस्स चोरसेणावइस्स चारपुरिसा इमीसे कहाए लट्ठा समाणा जेणेव सालाडवी चोरपल्ली जेणेव अभग्गसेणे चोरसेणावई तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता करयल जाव एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया!
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