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तृतीय अध्ययन - स्कंदश्री की चिन्ता ........................................................... हुआ। किसी अन्य समय लगभग तीन मास पूर्ण होने पर स्कंदश्री को इस प्रकार दोहद उत्पन्न हुआ - वे माताएं धन्य हैं जो अनेक मित्रों, ज्ञातिजनों, निजकजनों, स्वजनों, संबंधियों और परिजनों की स्त्रियों के तथा अन्य चोर महिलाओं के साथ घिरी हुई तथा नहाई हुई यावत् अनिष्टोत्पादक स्वप्न को निष्फल करने के लिये प्रायश्चित्त के रूप में तिलक एवं मांगलिक कृत्यों को करके सर्व प्रकार के अलंकारों से विभूषित हो, बहुत से अशन, पान, खादिम और स्वादिम पदार्थों सुरा, मधु आदि मदिराओं का आस्वादन, विस्वादन, परिभाजन और परिभोग करती हुई विचर रही हैं।
स्कंदनी की चिंता .. जिमियभुत्तुत्तरागयाओ पुरिसणेवत्थिया संणद्धबद्ध जाव गहियाउहप्पहरणावरणाभरिएहिं फलएहिं णिक्किट्ठाहिं असीहिं अंसागएहिं तोणेहिं सजीवेहिं धणूहिं समुक्खित्तेहिं सरेहिं समुल्लालियाहि दामाहिं लंबियाहि य ओसारियाहिं ऊरुघंटाहिं छिप्पतूरेणं वज्जमाणेणं वज्जमाणेणं महया उक्किट्ठ जाव समुद्दरवभूयं पिव करेमाणीओ सालाडवीए चोरपल्लीए सव्वओ समंता ओलोएमाणीओओलोएमाणीओ आहिंडमाणीओ-आहिंडमाणीओ दोहलं विणेति। तं जइ णं अहंपि जाव दोहलं विणिज्जामि-त्ति कट्ट तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि जाव झियाइ ॥७२॥
कठिन शब्दार्थ - जिमियभुत्तुत्तरागयाओ - जेमितभुक्तोत्तरागता-जो भोजन करके अनन्तर उचित स्थान पर आ गई हैं, पुरिसणेवत्थिया - पुरुष वेश को धारण किये हुए, संणबद्ध - दृढ बंधनों से बांधे हुए, गहियाउहप्पहरणावरणाभरिएहिं - जिन्होंने आयुध और प्रहरण ग्रहण किये हुए हैं, वामहस्त में धारण किये हुए, फलएहिं - फलक-ढालों के द्वारा, णिक्किट्ठाहिं असीहिं - कोश-म्यान से निकली हुई कृपाणों के द्वारा, अंसागएहिं - अंशागत स्कंध देश को प्राप्त, तोणेहिं- तूण-इषुधि (जिसमें बाण रखे जाते हैं) के द्वारा, सजीवेहिं धणुहि - सजीवप्रत्यंचाडोरी-से युक्त धनुषों के द्वारा, समुक्खित्तेहिं - लक्ष्य वेधन करने के लिये धनुष पर आरोपित किये गये, सरेहिं- शरों-बाणों द्वारा, समुल्लालियाहिं - समुल्लसित-ऊंचे किये हुए, दामाहिं - पाशों-जालों अथवा शस्त्र विशेषों से, लंबियाहि - लम्बित-जो लटक रही हों,
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