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६२.
विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
च रइं च धिइं च अविंदमाणे तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तयप्पियकरणे तब्भावणाभाविए कामज्झयाए गणियाए बहूणि अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणे-पडिजागरमाणे विहरइ॥७॥ ____ कठिन शब्दार्थ - जोणिसूले - योनिशूल-योनि में उत्पन्न होने वाली तीव्र वेदना विशेष, मुच्छिए - मूर्च्छित, गिद्धे - गृद्ध-आकांक्षा वाला, गढिए - ग्रथित-स्नेह जाल में बंधा हुआ, अज्झोववण्णे - अध्युपपन्न-उसमें आसक्त हुआ, सुई - स्मृति-स्मरण, रई - रति-प्रीति, धिइं-धृति-मानसिक स्थिरता, अविंदमाणे - प्राप्त न करता हुआ, तच्चित्ते - तद्गतचित्त-उसी में चित्त वाला, तम्मणे - उसी में मन रखने वाला, तल्लेसे - तद्विषयक परिणामों वाला, तदज्झवसाणे - तद्विषयक अध्यवसाय, तदट्ठोवउत्ते - उसकी प्राप्ति के लिये उपयुक्त-उपयोग रखने वाला, तयप्पियकरणे - उसी में समस्त इन्द्रियों को अर्पित करने वाला, तब्भावणाभाविएउसी की भावना करने वाला, छिद्दाणि - छिद्र, विवराणि - विवर।
भावार्थ - तब उस विजयमित्र नामक राजा की श्रीनामक देवी को योनिशूल उत्पन्न हो गया अतः विजयमित्र नरेश रानी के साथ उदार-प्रधान मनुष्य संबंधी कामभोगों के सेवन में समर्थ नहीं रहा। तदनन्तर अन्य किसी समय उस राजा ने उज्झितक कुमार को कामध्वजा गणिका के स्थान में से निकलवा दिया और कामध्वजा वेश्या को अन्तःपुर में रख लिया तथा उसके साथ मनुष्य संबंधी प्रधान कामभोगों को भोगने लगा।
तदनन्तर कामध्वजा गणिका के गृह से निकाले जाने पर कामध्वजा वेश्या में मूर्छित-उस वेश्या के ध्यान में ही मूढ-पगला बना हुआ, गृद्ध-उस वेश्या की आकांक्षा-इच्छा रखने वाला, ग्रथित-उस गणिका के ही स्नेहजाल में जकड़ा हुआ और अध्युपपन्न-उस वेश्या की चिंता में अत्यधिक आसक्त रहने वाला वह उज्झितक कुमार और किसी स्थान पर भी स्मृति, रति और धृति न करता हुआ उसी में चित्त और मन लगाए हुए, तद्विषयक परिणाम वाला, तत्संबंधी कामभोगों में प्रयत्नशील, उसकी प्राप्ति के लिये उद्यत और तदप्तिकरण-जिसका मन, वचन और काया ये सब उसी के लिये अर्पित हो रहे हैं अतएव उसी की भावना से भावित होता हुआ कामध्वजा वेश्या के अन्तर, छिद्र और विवरों की गवेषणा करता हुआ जीवन व्यतीत कर रहा था।
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