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तृतीय अध्ययन - चोरसेनापति के कुकृत्य ........................................................... विद्धंसेमाणे तज्जेमाणे-तज्जेमाणे तालेमाणे-तालेमाणे णित्थाणे णिद्धणे णिक्कणे करेमाणे विहरइ। महब्बलस्स रण्णो अभिक्खणं अभिक्खणं कप्पायं गेण्हइ। - तस्स णं विजयस्स चोरसेणावइस्स खंदसिरी णामं भारिया होत्था अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरे। तस्स णं विजयचोरसेणावइस्स पुत्ते खंदसिरीए भारियाए अत्तए अभग्गसेणे णामं दारए होत्था अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरे विण्णायपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुपत्ते ॥६५॥
____ कठिन शब्दार्थ - पारदारियाण - परस्त्री लम्पटों, गंठिभेयाण - ग्रंथि भेदकों-गांठ '' कतरने वालों, संधिच्छेयाण - संधि छेदकों-सांध लगाने वालों, खंडपट्टाण - जिनके ऊपर
पहनने लायक पूरा वस्त्र भी नहीं, छिण्ण-भिण्ण-बाहिराहियाणं - छिन्न-जिनके हाथ आदि . अवयव काटे गये हों, भिन्न-जिनके नासिका आदि अवयव काटे गये हों, बहिष्कृत-जो नगर
आदि से बाहर निकाल दिये गये हों, कुडंगे - कुटंक-वंश गहन (बांस के वन) के समान रक्षा करने वाला, गामघाएहि - ग्रामों को नष्ट करने से, णगरघाएहि - नगरों का नाश करने से, गोग्गहणेहि - गाय आदि पशुओं के अपहरण से, बंदिग्गहणेहि - कैदियों का अपहरण करने से, पंथकोहहि - पथिकों को लूटने से, खत्तखणणेहि - खात लगा कर चोरी करने से,
ओवीलेमाणे - पीड़ित करता हुआ, विद्धंसेमाणे - धर्म भ्रष्ट करता हुआ, तज्जेमाणे - तर्जित-तर्जना युक्त करता हुआ, तालेमाणे - चाबुक आदि से ताडित करता हुआ, णित्थाणे - स्थान रहित, णिद्धणे - निर्धन-धन रहित, णिक्कणे - निष्कण-धान्यादि से रहित करता हुआ, कप्पायं- राजदेय कर-महसूल को, अभिक्खणं- बार बार, अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरे - अन्यून एवं निर्दोष पांच इन्द्रिय वाले, विण्णायपरिणयमेत्ते - विज्ञात-विशेष ज्ञान रखने वाला एवं बुद्धि आदि की परिपक्व अवस्था को प्राप्त किये हुए, जोव्वणगमणुपत्ते - युवावस्था को प्राप्त किये हुए।
भावार्थ - तदनन्तर वह विजय नामक चोर सेनापति अनेक चोर, पारदारिक-परस्त्री लम्पट, ग्रंथिभेदक, संधिछेदक, जुआरी धूर्त तथा अन्य बहुत से छिन्न-हाथ आदि जिनके काटे हुए हैं, भिन्न-नासिका आदि से रहित और बहिष्कृत किये हुए मनुष्यों के लिये कुटंक-आश्रयदाता था। . वह पुरिमताल नगर के ईशानकोणगत जनपद-देश को अनेक ग्रामघात, नगरघात, गौहरण बंदी-ग्रहण, पथिकजनों के धनादि के अपहरण तथा सेंध का खनन अर्थात् पाड़ लगा कर चोरी
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