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द्वितीय अध्ययन - उज्झितक की दुर्दशा
तणं से उज्झिए दारए अण्णया कयाइ कामज्झयं गणियं अंतरं लब्भेइ लब्भेत्ता कामज्झयाए गणियाए गिहं रहसियं अणुप्पविसइ अणुप्पविसित्ता कामज्झयाए गणियाए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ ॥ ५८ ॥
भावार्थ - तदनन्तर ं वह उज्झितक कुमार किसी अन्य समय में कामध्वजा गणिका के पास जाने का अवसर प्राप्त कर गुप्त रूप से उसके घर में प्रवेश कर के कामध्वजा वेश्या के साथ मनुष्य संबंधी उदार कामभोगों को भोगता हुआ समय व्यतीत करने लगा।
उज्झितक की दुर्दशा
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इमं च णं मित्ते राया हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए मणुस्सवागुरापरिक्खित्ते जेणेव कामज्झयाए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तत्थ णं उज्झियए दारए कामज्झयाए गणियाए सद्धिं उरालाई माणुस्साई भोगभोगाई जाव विहरमाणं पासइ पासित्ता आसुरुते ४ तिवलियभिउडिं णिड़ाले साहहु उज्झियगं दारगं पुरिसेहिं गिण्हावेइ गिण्हावेत्ता अट्ठ- मुट्ठि - जाणु - कोप्परपहारसंभग्गमहियगत्तं करेइ करेत्ता अवओडयबंधणं करे करेत्ता एएणं विहाणेणं वज्झं आणावे |
एवं खलु गोयमा ! उज्झियए दारए पुरापोराणाणं कम्माणं जाव पच्चणुभवमाणे विहरइ ॥ ५६ ॥
कठिन शब्दार्थ- मणुस्सवागुरापरिक्खित्ते - मनुष्य समूह से घिरा हुआ, तिवलियभिउडिंत्रिवलिका - तीन रेखाओं से युक्त भृकुटि, अट्ठि मुट्ठि - जाणु - कोप्परपहार-संभग्ग-महियगत्तं यष्टि (लाठी) मुष्टि ( मुक्का) जानु (घुटने) कूर्पर कोहनी के प्रहरणों से संभग्न - चूर्णित तथा मथित गात्र वाला, अवओडयबंधणं अवकोटकबन्धन - जिसमें रस्सी से गला और हाथों को
मोड़ कर पृष्ठ भाग के साथ बांधा जाता है, वज्झं - वध्य, आणवेइ - आज्ञा देता है।
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