________________
अभग्गसेणे णामं तड़यं अज्डायणं अभग्नसेन नामक तीसरा अध्ययन
उत्क्षेप-प्रस्तावना तच्चस्स उक्खेवो-एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं पुरिमताले णामं णयरे होत्था रिद्ध० । तस्स णं पुरिमतालस्स णयरस्स उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए एत्थ णं अमोहदंसी उजाणे तत्थ णं अमोहदंसिस्स जक्खस्स आययणे होत्था। तत्थ णं पुरिमताले णं० महाबले णामं राया होत्था ॥३॥ ___ भावार्थ - तृतीय अध्ययन की प्रस्तावना पूर्ववत् समझ लेनी चाहिये। हे जम्बू! उस काल
और उस समय में पुरिमताल नामक एक नगर था जो ऋद्धि समृद्धि से परिपूर्ण था। उस नगर में ईशान कोण में अमोघदर्शी नाम का एक रमणीय उद्यान था। उस उद्यान में अमोघदर्शी नामक यक्ष का यक्षायतन था। पुरिमताल नगर में महाबल नाम का राजा राज्य करता था।
विवेचन - तीसरे अध्ययन की प्रस्तावना - श्री जम्बू स्वामी ने विनम्रता पूर्वक सुधर्मा स्वामी से कहा - हे भगवन्! आपने विपाक सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के दूसरे अध्ययन का जो भाव (अर्थ) फरमाया है वह मैंने सुन लिया है। अब आप मुझे यह बतलाने की कृपा करें कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने तीसरे अध्ययन का क्या भाव फरमाया है ?
जंबू स्वामी की जिज्ञासा पूर्ति के लिए सुधर्मा स्वामी तीसरे अध्ययन का प्रारंभ करते हुए फरमाते हैं कि हे जंबू! इस अवसर्पिणी काल का चौथा आरा जब बीत रहा था उस समय पुरिमताल नामक एक सुप्रसिद्ध नगर था। जो कि यथोचित गुणों से युक्त और वैभव पूर्ण था। उसके ईशान कोण में अमोघदर्शी नामक एक रमणीय उद्यान था। उस उद्यान में अमोघदर्शी नामक एक प्रसिद्ध यक्ष का यक्षायतन बना हुआ था। पुरिमताल नगर का राजा महाबल था।
विजय नामक चोर सेनापति का वर्णन तत्थ णं पुरिमतालस्स णयरस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए देसप्पंते अडवी संठिया, एत्थ णं सालाडवी णामं चोरपल्ली होत्था विसमगिरिकंदर-कोलंब
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org