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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
वत्थगंध-मल्लालंकाराहारं अपरिभुंजमाणी करयलमलियव्व कमलमाला ओहय जाव झियाइ॥४५॥
कठिन शब्दार्थ - बहुपडिपुण्णाणं - परिपूर्ण-पूरे, दोहले - दोहद (दोहला), अम्मयाओमाताएं, धण्णाओ - धन्य हैं, जम्मजीवियफले - जन्म और जीवन के फल को, ऊहेहिं - उधस्-वह थैली जिसमें दूध भरा रहता है, थणेहि - स्तन, वसणेहि - वृषण-अण्डकोष, छप्पाहि - पूंछ, ककुहेहि - ककुद-स्कंध का ऊपरी भाग, वहेहि - स्कन्ध, कण्णेहि - कर्ण, अच्छीहि - नेत्र, णासाहि - नासिका, कंबलेहि - कम्बल-सास्ना-गाय के गले का चमड़ा, सोल्लेहि - शूल्य-शूलाप्रोत मांस, तलिएहि - तलित-तला हुआ, भज्जेहि - भुना हुआ, परिसुक्केहि - परिशुष्क-स्वतः सूखा हुआ, लावणेहि - लवण से संस्कृत मांस, सुरंसुरा, महुं - मधु-पुष्पनिष्पन्न सुरा विशेष, मेरगं - मेरक-मद्य विशेष जो कि ताल फल से बनाई जाती है, जाई - मद्य विशेष जो कि जाति कुसुम के जैसे वर्ण वाली होती है, सीधुं - सीधु-मद्य विशेष जो कि गुड़ और धातकी के मेल से बनाई जाती है, पसण्णं - प्रसन्ना-मद्य विशेष जो कि द्राक्षा आदि से निष्पन्न होती है, आसाएमाणीओ - आस्वाद लेती हुई, विसाएमाणीओ - विशेष आस्वाद लेती हुई, परिभाएमाणीओ - दूसरों को देती हुई, परिभुंजेमाणीओ - परिभोग करती हुई, विणेति - पूर्ण करती है, अविणिज्जमाणंसि - पूर्ण न होने से, सुक्खा - सूखने लगी, भुक्खा - भोजन न करने से बल रहित होकर भूखे व्यक्ति के समान दिखने लगी, णिम्मंसा - मांस रहित अत्यंत दुर्बल-सी हो गई, ओलुग्गा - रोगिणी,
ओलुग्गसरीरा - रोगी के समान शिथिल शरीर वाली, णित्तेया - निस्तेज-तेज से रहित, दीणविमणवयणा - दीन तथा चिंतातुर मुख वाली, पंडुल्लइयमुही - जिसका मुख पीला पड़ गया है, ओमंथियणयणवयणकमला - जिसेक नेत्र तथा मुख कमल मुझ गया, जहोइयंयथोचित, पुप्फ-वत्थगंधमल्लालंकाराहारं - पुष्प, वस्त्र, गंध, माल्य-फूलों की गुंथी हुई माला, अलंकार-आभूषण और हार का, करयलमलियव्व कमलमाला - करतल से मर्दित कमलमाला की तरह।
भावार्थ - लगभग तीन माह के पश्चात् उत्पला को इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ - धन्य हैं वे माताएं यावत् उन्होंने ही जन्म तथा जीवन को भलीभांति सफल किया है जो अनेक अनाथ या सनाथ नागरिक पशुओं यावत् वृषभों के उधस्, स्तन, वृषण, पुच्छ, ककुद, स्कंध, कर्ण, नेत्र, नासिका, जिह्वा, ओष्ठ तथा कम्बलसास्ना जो कि शूल्य (शूला-प्रोत) तलित-तले
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