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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
से गौतमस्वामी ने पूछा कि - 'हे भगवन्! यह पुरुष पूर्वभव में कौन था? कहां रहता था? उसका क्या नाम और गोत्र था? एवं किस पाप मय कर्म के प्रभाव से वह इस हीनदशा का अनुभव कर रहा है?'
भगवान् का समाधान एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूहीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणाउरे णामं णयरे होत्था रिद्ध०। तत्थ णं हत्थिणाउरे णयरे सुणंदे णामं राया होत्था महया० तत्थ णं हत्थिणारे णयरे बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगे गोमंडवे होत्था अणेगखंभसयसण्णिविढे पासाईए दरिसणीए अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं बहवे णयरगोरूवा णं सणाहा य अणाहा य णगरगाविओ य णगरवसभा य णगरबलीवद्दा य णगरपड्डयाओ य पउरतणपाणिया णिन्भया णिरुवसग्गा सुहं सहेणं परिवसंति ॥४३॥
कठिन शब्दार्थ - गोमंडवे - गोमण्डप-गोशाला, णगरगोरूवा - नगरगोरूपा-नगर के गाय बैल आदि चतुष्पद पशु, सणाहा - सनाथ, अणाहा - अनाथ, अंगरगाविओ - नगर की गायें, णगरबलीवदा - नगर के बैल, णगरपहियाओ - नगर की छोटी गायें या भैंसे, जगरवसमा - नगर के सांड, परतणपाणिया - प्रचुर तृण पानी. या जिन्हें प्रचुर घास और पानी मिलता था, णिन्मया - निर्भय-भय से रहित, णिरुवसग्गा - निरुपसर्ग-उपसर्ग से रहित, सुहंसुहेणं - सुखपूर्वक, परिवसंति - निवास करते हैं।
भावार्थ - हे गौतम! उस पुरुष के पूर्वभव का वृत्तांत इस प्रकार है - उस काल तथा उस समय में इसी जंबूद्वीप नामक द्वीप के भारत वर्ष में हस्तिनापुर नामक एक समृद्धिशाली नगर था। उस नगर में सुनंद नाम का राजा था। जो महाहिमवान् (हिमालय के समान, पुरुषों में महान्) था। उस हस्तिनापुर नगर के लगभग मध्यप्रदेश में सैंकड़ों स्तंभों से निर्मित प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप एक महान् गोमंडप था, वहां पर नगर के अनेक सनाथ और अनाथ पशु अर्थात् नगर की गौएं, नगर के बैल, नगर की छोटी-छोटी बछडिएं एवं सांड सुखपूर्वक रहते थे। उनको वहां घास और पानी आदि प्रचुर मात्रा में मिलता था और वे भय तथा उपसर्ग आदि से रहित होकर घूमते थे।
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