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द्वितीय अध्यय
पूर्वभव पृच्छा तए णं से भगवओ गोयमस्स तं पुरिसं पासित्ता इमे अज्झथिए ५-अहो णं इमे पुरिसे जाव णिरयपडिरूवियं वेयणं वेएइ त्तिकट्ठ वाणियगामे णयरे उच्चणीयमज्झिमकुलाइं अडमाणे अहापजत्तं समुदाणं गिण्हइ गिण्हेत्ता वाणियगामे णयरे मज्झमझेणं जाव पडिदंसेइ, पडिदंसेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु अहं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे वाणियगामं जाव तहेव णिवेएइ। से णं भंते! पुरिसे पुव्वभवे के आसी जाव पच्चणुभवमाणे विहरइ?॥४२॥ - कठिन शब्दार्थ - अज्झथिए - आध्यात्मिक संकल्प, णिरयपडिरूवियं - नरक के सदृश, उच्चणीयमज्झिमकुले - ऊंचे (धनिक), नीचे (निर्धन) मध्यम (मध्य) कोटि के घरों में, अहापज्जत्तं - आवश्यकतानुसार, समुयाणं - सामुदानिक भिक्षा, णिवेएइ - अनुभव करता है।
भावार्थ - तदनन्तर उस पुरुष को देख कर भगवान् गौतमस्वामी को यह संकल्प उत्पन्न हुआ कि अहो! यह पुरुष कैसी नरक सदृश वेदना का अनुभव कर रहा है। तत्पश्चात् वाणिज्यग्राम नगर में उच्च, नीच, मध्यम कोटि के घरों में भ्रमण करते हुए आवश्यकतानुसार भिक्षा लेकर वाणिज्यग्राम के मध्य में से होते हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास आये और उन्हें लाई हुई भिक्षा दिखलाई। तदनन्तर भगवान् को वंदना नमस्कार करके इस प्रकार बोले - हे भगवन्! आपकी आज्ञा से मैं भिक्षा के लिये वाणिज्यग्राम नगर में गया, वहाँ मैंने नरक सदृश वेदना का अनुभव करते हुए एक पुरुष को देखा।
हे भगवन्! वह पुरुष पूर्वभव में कौन था जो यावत् नरक तुल्य वेदना का अनुभव करता हुआ समय व्यतीत कर रहा है।
विवेचन - भगवान् से आज्ञा प्राप्त कर भिक्षा के निमित्त वाणिज्यग्राम नगर में गये गौतमस्वामी ने लौट कर भगवान् महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार किया, लाई हुई भिक्षा दिखलायी और राजमार्ग में जो कुछ देखा वहां का अथ से इति पर्यंत संपूर्ण वृत्तांत भगवान् से कह सुनाया। सुनाने के बाद उस पुरुष के पूर्वभव संबंधी वृत्तांत को जानने की इच्छा से भगवान
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