________________
४६
. विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध +0000000000................................................ रहने का इच्छुक था, उसके शरीर को तिल तिल करके काटा जा रहा था, जिसके मांस के छोटे-छोटे टुकड़े काक आदि पक्षियों के खाने योग्य हो रहे थे ऐसा वह पापी पुरुष सैकड़ों पत्थरों या चाबुकों से मारा जा रहा था और अनेकों नरनारियों से घिरा हुआ प्रत्येक चौराहे आदि (जहाँ पर चार या इससे अधिक रास्ते मिले हुए हों ऐसे स्थानों) पर फूटे हुए ढोल से. उसके संबंध में इस प्रकार घोषणा की जा रही थी - 'हे महानुभावो!' उज्झितक नामक बालक ने किसी राजा अथवा राजपुत्र का कोई अपराध नहीं किया किंतु यह इसके अपने ही कर्मों का अपराध-दोष है जिसके कारण इस दुरवस्था को प्राप्त हो रहा है। __विवेचन - भिक्षा के लिये वाणिज्यग्राम नगर में भ्रमण करते हुए गौतमस्वामी ने राजमार्ग पर बहुत से हाथी घोड़े तथा, सैनिकों के दल को देखा। जिस तरह किसी उत्सव विशेष के अवसर पर अथवा युद्ध के समय हाथियों, घोड़ों और सैनिकों को श्रृंगारित, सुसज्जित एवं अस्त्र शस्त्र आदि से विभूषित किया जाता है उसी प्रकार वे हस्ती, घोड़े और सैनिक आदि विभूषित थे। उनके मध्य में एक अपराधी पुरुष उपस्थित था जिसे वध्यभूमि की ओर ले जाया जा रहा था और नगर के प्रसिद्ध स्थानों पर उसके अपराध की सूचना दी जा रही थी। प्रस्तुत सूत्र में हाथियों, घोड़ों और सैनिकों का वर्णन करने के साथ साथ उज्झितक कुमार को वध्य स्थल की
ओर ले जाने आदि का कारुणिक दृश्य खिंचा गया है। ____ मानव को उसके कृत कर्म के अनुसार फल भोगना ही पड़ता है। प्रभु सूत्रकृतांग सूत्र के अध्ययन ५ उद्देशक २ में फरमाते हैं -
जं जारिसं पुव्वमकासि कम्मं तमेव आमच्छड संपराए। एगं तु दुपखं भवमज्जणित्ता, वेदंति दुवखी तमणंत दुवखं॥ २३॥
अर्थात् - जिस जीव ने जैसा कर्म किया है वही उसको दूसरे भव में प्राप्त होता है। जिसने एकान्त दुःख रूप नरक भव का कर्म बांधा है वह अनंत दुःख र नस्क-को भोगता है। ____ उज्झितक कुमार के विषय में भी यही घोषणा की जा रही थी कि इस व्यक्ति को कोई दूसरा दण्ड देने वाला नहीं है किंतु इसके अपने कर्म ही इसे दण्ड दे रहे हैं अर्थात् राज्य की ओर से इसके साथ जो व्यवहार हो रहा है वह इसी के किये हुए कर्मों का परिणाम है।
उज्झितक कुमार की इस दशा को देख कर भगवान् गौतमस्वामी के हृदय में क्या विचार उत्पन्न हुआ और उसके विषय में उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से क्या कहा? अब सूत्रकार उसका वर्णन करते हैं -
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org