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द्वितीय अध्ययन - गोत्रास की नरक में उत्पत्ति ...........................................................
भावार्थ - तदनन्तर गोत्रास बालक ने बालभाव को त्याग कर युवावस्था में पदार्पण किया तत्पश्चात् भीम कूटग्राह किसी समय कालधर्म को प्राप्त हुआ तब गोत्रास ने अपने मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, संबंधी और परिजनों से परिवृत हो कर रुदन, आक्रन्दन और विलाप करते हुए कूटग्राह का दाह संस्कार किया और अनेक लौकिक मृतक क्रियाएं की।
विवेचन - सदा एकान्त हित का उपदेश देने वाले सखा को 'मित्र' कहते हैं। समान आचार विचार वाले जाति समूह को 'ज्ञाति' कहते हैं। माता, पिता, पुत्र, कलत्र (स्त्री) आदि को 'निजक' कहते हैं। भाई, चाचा, मामा आदि को 'स्वजन' कहते हैं। श्वसुर, जामाता, साले, बहनोई आदि को 'संबंधी' तथा मंत्री, नौकर, दास, दासी आदि को 'परिजन' कहते हैं।
गोत्रास की नरक में उत्पत्ति ____तए णं से सुणंदे राया गोत्तासं दारयं अण्णया कयाइ सयमेव कूडग्गाहत्ताए ठवेइ। तए णं से गोत्तासे दारए कूडग्गाहे जाए यावि होत्था अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। तए णं से गोत्तासे दारए कूडग्गाहित्ताए कल्लाकल्लिं अद्धरत्तयकालसमयंसि एगे अबीए संणद्धबद्धवम्मियकवए जाव गहियाउहप्पहरणे सयाओ गिहाओ णिग्गच्छइ णिग्गच्छित्ता जेणेव गोमंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहूणं णगरगोरूवाणं सणाहाण य जाव वियंगेइ वियंगेत्ता जेणेव सए. गेहे तेणेव उवागए।
तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे तेहिं बहहिं गोमंसेहि य सोल्लेहि य......सुरं च ६ आसाएमाणे विसाएमाणे जाव विहरइ। तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे एयकम्मे......सुबहूं पावकम्मं समज्जिणित्ता पंचवाससयाई परमाउयं पालइत्ता अदृदुहट्टोवगए कालमासे कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसं तिसागरोवमठिइएसु णेरइएसु णेरइयत्ताए उववण्णे॥५१॥
कठिन शब्दार्थ - कल्लाकल्लिं - प्रतिदिन, अदुहट्टोवगए - चिंताओं और दुःखों से पीड़ित हो कर।
भावार्थ - तदनन्तर सुनंद राजा ने गोत्रास को स्वयमेव कूटग्राह के पद पर नियुक्त कर
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