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द्वितीय अध्ययन - उज्झितक कुमार का बाल्यकाल
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उज्झितक कुमार का बाल्यकाल तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही तं दारगं जायमेत्तयं चेव एगते उक्कुरुडियाए उज्झावेइ, उज्झावेत्ता दोच्चंपि गिण्हावेइ, गिण्हावेत्ता अणुपुव्वेणं सारक्खेमाणी संगोवेमाणी संवढे।
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो ठिइवडियं च चंदसूरदसणं च जागरियं च महया इडीसक्कारसमुदएणं करेंति। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे णिव्वत्ते संपउत्ते बारसमे दिवसे इमेयारूवं गोण्णं गुणणिप्फण्णं णामधेजं करेंति, जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्तए चेव एगते उक्कुरुडियाए उज्झिए तम्हा णं होउ अम्हं दारए उज्झियए णामेणं। तए णं से उज्झियए दारए पंचधाईपरिग्गहिए तंजहा-खीरधाईए १ मज्जणधाईए २ मंडणधाईए ३ कीलावणधाईए ४ अंकधाईए ५ जहा दढपइण्णे जाव णिव्वाघाए गिरिकंदरमल्लीणे व चंपगपायवे सुहंसुहेणं विहरइ॥५३॥
- कठिन शब्दार्थ - ठिइवडियं - स्थिति पतित-कुल मर्यादा के अनुसार पुत्र-जन्मोचित बधाई बांटने आदि की पुत्र जन्म क्रिया, चंदसूरदसणं - चन्द्र सूर्य दर्शन, जागरियं - जागरण, इहिसक्कारसमुदएणं - ऋद्धि और सत्कार के साथ, बारसाहे संपत्ते - बारहवें दिन के आने पर, गोण्णं - गौण-गुण से संबंधित, गुणणिप्फण्णं - गुण निष्पन्न, उज्झियए - उज्झितक, पंचधाई परिंग्गहीए - पांच धायमाताओं की देखरेख में, खीरधाईए - क्षीरधात्री-दूध पिलाने वाली, मज्जणधाईए - स्नानधात्री-स्नान कराने वाली, मंडणधाईए - मंडनधात्री-वस्त्राभूषण से अलंकृत कराने वाली, कीलावणधाईए - क्रीड़ावनधात्री-क्रीड़ा कराने वाली, अंकधाईए - अंकधात्री-गोद में खिलाने वाली, णिव्वाय - निर्वात-वायु रहित, णिव्वाघाय - निर्व्याघातआघात से रहित, गिरिकंदर-मल्लीणे - पर्वतीय कंदरा में अवस्थित, चंपगपायवे - चम्पक वृक्ष की तरह, सुहंसुहेणं- सुखपूर्वक, परिवड्डइ - वृद्धि को प्राप्त होने लगा।
भावार्थ - सुभद्रा सार्थवाही ने उस बालक को जन्म देते ही एकान्त में उकरडी-कूडा गिराने की जगह पर फिकवा दिया और फिर उसे उठवा लिया और उठवा कर क्रमपूर्वक संरक्षण एवं संगोपन करती हुई वह उसका परिवर्द्धन करने लगी।
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