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विपाक सूत्र- प्रथम श्रुतस्कन्ध
दिया। तत्पश्चात् अधर्मी यावत् दुष्प्रत्यानंद वह गोत्रास कूटग्राह प्रतिदिन अर्द्धरात्रि के समय सैनिक की तरह तैयार होकर, कवच पहन कर एवं अस्त्र शस्त्रों को ग्रहण कर अपने घर से निकलता है और गोमंडप में जाता है वहां पर अनेक गौ आदि नागरिक पशुओं के अंगोपांगों को काटकर अपने घर आ जाता है आकर उन गौ आदि पशुओं के शूल-पक्व मांसों के साथ सुरा आदि का आस्वादन आदि करता हुआ जीवन व्यतीत करता है।
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तत्पश्चात् वह गोत्रास कूटग्राह इस प्रकार के कर्मों वाला, इस प्रकार के कार्यों में प्रधानता रखने वाला, एवंविधविद्या- पाप रूप विद्या को जानने वाला तथा एवंविध आचरणों वाला नानाप्रकार के पाप कर्मों का उपार्जन कर पांच सौ वर्ष की परम आयु को भोग कर चिंताओं और दुःखों से पीड़ित होता हुआ कालमास में काल करके उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वाली दूसरी नरक में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ ।
विवेचन- गोत्रास हिंसक और पापमय प्रवृत्ति करने वाला था अतः पाप कर्मों का उपार्जन करके तीन सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाले दूसरे नरक में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ।
उज्झितक कुमार का जन्म
तए णं सा विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दा णामं भारिया जायणिदुया यावि होत्था जाया-जाया दारगा विणिहायमावज्जंति । तए णं से गोत्तासे कूडग्गाहे. दोच्चार पुढवीए अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव वाणियगामे णयरे विजयमित्तस्स सत्थवाहस्स सुभद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववण्णे । तए णं सा सुभद्दा सत्थवाही अण्णया कयाइ णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया ॥ ५२ ॥
कठिन शब्दार्थ - जायणिंदुया - जात निंदुका-जिसके बच्चे उत्पन्न होते ही मर जाते हैं। भावार्थ - तदनन्तर विजयमित्र सार्थवाह की सुभद्रा नाम की भार्या जो कि जातनिंदुका थी अर्थात् जन्म लेते ही मर जाने वाले बच्चों को जन्म देने वाली थी। उसके बालक उत्पन्न होते ही विनाश को प्राप्त हो जाते थे। तत्पश्चात् वह कूटग्राह गोत्रास का जीव दूसरी नरक से निकल कर वाणिज्यग्राम नगर के विजयमित्र सार्थवाह की सुभद्रा भार्या के उदर में (कुक्षि में) पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ। तदनन्तर वह सुभद्रा सार्थवाही ने किसी अन्य समय में नव मास के परिपूर्ण होने पर बालक को जन्म दिया।
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