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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
अवश्य पड़ता है। कर्मों को भोगे बिना उनसे छुटकारा नहीं हो सकता। पापों के फल भोग के रूप में ईकाई राष्ट्रकूट के शरीर में एक साथ श्वास आदि सोलह रोगांतक उत्पन्न हो गये। ___जो रोग अत्यंत कष्टजनक हों तथा जिनका प्रतिकार कष्ट साध्य अथवा असाध्य हो उन्हें रोगांतक कहते हैं। ऐसे सोलह रोगों के नाम कठिन शब्दार्थ एवं भावार्थ में दिये गये हैं। .
राष्ट्रकूट की घोषणा तए णं से एक्काई रट्टकूडे सोलसहिं रोगायंकेहिं अभिभूए समाणे कोडंबियपुरिसे सहावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुल्मे देवाणुप्पिया! विजयवरमाणे खेडे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-महापहपहेसु महया-महया सदेणं उग्योसेमाणा-उग्योसेमाणा एवं वयह - इहं खलु देवाणुप्पिया! एक्काईरहकूडस्स सरीरगंसि सोलस-रोगायंका पाउन्भूया, तंजहा-सासे कासे जरे जाव कोढे, तं जो णं इच्छइ देवाणुप्पिया! वेजो वा वेजपुत्तो वा जाणुओ वा जाणुयपुत्तो वा तेगिच्छिओ वा तेगिच्छियपुत्तो वा एक्काईरहकूडस्स तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, तस्स णं एक्काई रहकूडे विउलं अत्थसंपयाणं दलयइ, दोच्चंपि तन्वंपि उग्धोसेह उग्धोसेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति ॥२६॥
कठिन शब्दार्थ - अभिभूए समाणे - खेद को प्राप्त, सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चरमहापह-पहेसु - श्रृंगाटक (त्रिकोण मार्ग), त्रिक-त्रिपथ-जहां तीन मार्ग मिलते हों, चतुष्कचतुष्पथ-जहां चार मार्ग मिलते हों, चत्वर-जहां चार से भी अधिक रास्ते मिलते हों, महापथराजमार्ग-जहां बहुत से मनुष्यों का गमनागमन होता हो और सामान्य मार्गों में, महया-महया सहेणं - बड़े ऊंचे स्वर से, उग्योसेमाणा - उद्घोषणा करते हुए, वयह - कहो, वेज्जो - वैद्य-शास्त्र तथा चिकित्सा में कुशल, वेज्जपुत्तो - वैद्य-पुत्र, जाणओ -बायक-केवल शास्त्र में कुशल, जाणयपुत्तो - ज्ञायक पुत्र, तेगिच्छिओ - चिकित्सक-चिकिता-लाव कराने में निपुण, तेगिच्छियपुत्तो - चिकित्सक पुत्र, उपसामिलए - उपशान्त करना, अत्यसंपपाणं . अर्थ संपदा, एयमाणत्तियं - इस आज्ञप्ति-आज्ञा को, पच्चप्पिणह - प्रत्यर्पण करो।
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