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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
ईकाई रोगग्रस्त तए णं से एक्काई रहकूडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स बहूणं राईसर-तलवरमाडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहाणं अण्णेसिं च बहूणं गामेल्लग-पुरिसाणं बहूसु कजेसु य कारणेसु य मंतेसु य गुज्झएसु य णिच्छएसु य ववहारेसु य सुणमाणे भणइ ण सुणेमि असुणमाणे भणइ सुणेमि एवं पस्समाणे भासमाणे गिण्हमाणे जाणमाणे। तए णं से एक्काई रट्टकूडे एयकम्मे एयप्पहाणे एयविजे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मं कलिकलुसं समजिणमाणे विहरइ।
तए णं तस्स एक्काइयस्स रटकूडस्स अण्णया कयाइ सरीरगंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउन्भूया, तंजहा
सासे कासे जरे दाहे कुच्छिसूले भगंदरे। अरिसा अजीरए दिट्ठीमुद्धसूले अकारए॥१॥ अच्छिवेयणा कण्णवेयणा कंडू उयरे कोढे॥२५॥
कठिन शब्दार्थ - राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडंबिय-इन्भ-सेहि-प्रेणावइसत्थवाहाणं - राजा-माडलिक, ईश्वर-युवराज, तलवर-राजा के कृपा पात्र अथवा जिन्होंने राजा की ओर से उच्च आसन प्राप्त किया हो, माडंबिक-मडम्ब के अधिपति, जिसके निकट दो-दो योजन तक कोई ग्राम न हो उस प्रदेश को मडम्ब कहते हैं, कौटुम्बिक-कुटुम्बों के स्वामी, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह-सार्थनायक, गामेल्लगपुरिसाणं - ग्रामीण पुरुषों के, बहुसुबहुत से, कज्जेसु - कार्यों में, कारणेसु - कारणों-कार्यसाधक हेतुओं में, मंतेसु - मंत्रोंकर्तव्य का निश्चय करने के लिये किये गये गुप्त विचारों में, गुज्झएसु - गुप्त, णिच्छएसु - निश्चयों-निर्णयों में, ववहारेसु - व्यवहारों-विवादों में या व्यावहारिक बातों में, सुणमाणे - सुनता हुआ, भणति- कहता है, सुणेमि - सुनता हूँ, असुणमाणे - नहीं सुनता हुआ, पस्समाणे- देखता हुआ, भासमाणे - बोलता हुआ, गेण्हमाणे- ग्रहण करता हुआ, जाणमाणेजानता हुआ, एयकम्मे - इस प्रकार के कर्म करने वाला, एयप्पहाणे - इस प्रकार के कर्मों में तत्पर, एयविज्जे - इसी प्रकार की विद्या-विज्ञान वाला, एपसमायारे - इस प्रकार के आचार वाला, सुबहुं - अत्यधिक, कलिकलुसं - कलह का कारणीभूत होने से मलीन,
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