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विपाक सूत्र - प्रथम श्रुतस्कन्ध
कर, सत्थकोसहत्थगया - शस्त्रकोष औजार रखने की पेटी (बक्स) हाथ में लेकर, सएहिं - अपने, गेहेहिंतो - घरों से, परामुसंति स्पर्श करते हैं, पुच्छंति पूछते हैं, अब्भंंगेहि अभ्यंगन - मालिश करने से, उवट्टणाहि - उद्वर्तन ( उबटन आदि मलने) से, सिणेहपाणेहि स्नेह पान कराने - घृत आदि स्निग्ध पदार्थों का पान कराने से, वमणेहि-वमन (उल्टी) कराने से, विरेयणाहि - विरेचन - मल को बाहर निकालने से, सेयणाहि - सेचन - जलादि सिंचन करने अथवा स्वेदन करने से, अवद्दाहणाहि - अवदहन- गर्म लोहे के कोश आदि से चर्म पर दागने से, अवण्हाणेहि - अवस्नान - चिकनाहट दूर करने के लिए विशेष प्रकार के द्रव्यों द्वारा संस्कारित - जल द्वारा स्नान कराने से, अणुवासणाहि - अनुवासन कराने अपान-गुदा द्वार से पेट में तैलादि के प्रवेश कराने से, वत्थिकम्मेहि - बस्तिकर्म करने-गुदा में वर्ति (बत्ती) आदि के प्रक्षेप करने से, णिरुहेहि - निरूह औषधियाँ डाल कर पकाए गए तैल के प्रयोग से - विरेचन विशेष से, सिरावेधेहि - शिरावेध नाड़ी वेध करने से, तच्छणेहि तक्षण करने क्षुरक छुरा उस्तरा आदि द्वारा त्वचा को काटने से, पच्छणेहि - प्रतक्षण- त्वचा को बारीक शस्त्रों से सूक्ष्म विदीर्ण करने से, सिरोबत्थेहि - शिरोबस्तिकर्म से मस्तक पर चमड़े की पट्टी बांध कर उसमें नाना विधि द्रव्यों से संस्कार किये गये तेल को भरने का नाम शिरोबस्ति है, तप्पणेहि तर्पण-तृप्त करने-तैलादि स्निग्ध पदार्थों के द्वारा शरीर का उपबृंहण करने से, पुडपागेहि पुटपाक-पाक विधि से निष्पन्न औषधियों से, छल्लीहि - छालों से, मूलेहि - वृक्ष आदि के मूलों - जड़ों से, सिलियाहि - शिलिका-चिरायता आदि से, गुलियाहि - गुटिकाओं - गोलियों से, ओसहेहि- औषधियों-जो एक द्रव्य से निर्मित हो, भेसज्जेहि- भैषज्यों - अनेक द्रव्यों से निर्माण की गई औषधियों से, संचाएंति - समर्थ हुए।
भावार्थ - तत्पश्चात् विजय वर्द्धमान खेट में इस प्रकार की उद्घोषणा को सुन कर अनेक वैद्य, वैद्यपुत्र, ज्ञायक, ज्ञायकपुत्र, चिकित्सक और चिकित्सकपुत्र हाथ में शस्त्रपेटिका लेकर अपने-अपने घरों से निकल पड़ते हैं, निकल कर विजय वर्द्धमान खेट के मध्य में से होते हुए जहां ईकाई राष्ट्रकूट का घर था वहां आते हैं, आकर एकादि राष्ट्रकूट के शरीर का स्पर्श करते. हैं, शरीर संबंधी परामर्श करने के बाद रोग विनिश्चयार्थ विविध प्रकार के प्रश्न पूछते हैं, प्रश्न पूछने के बाद उन १६ रोगांतकों में से किसी एक ही रोगांतक को उपशांत करने के लिये अनेक अभ्यंगन, उद्वर्तन, स्नेहपान, वमन, विरेचन, सेचन अथवा स्वेदन, अवदाहन, अवस्नान, अनुवासन, बस्तिकर्म, निरूह, शिरावेध, तक्षण, प्रतक्षण, शिरोबस्ति, तर्पण इन क्रियाओं से
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