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प्रथम अध्ययन - आगामी भव की पृच्छा
३७ ........................................................... पुत्तत्ताए पच्चायाइस्सइ। से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे जाव जोव्वणगमणुप्पत्ते तहारूवाणं थेराणं अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सइ, से णं तत्थ अणगारे भविस्सइ इरियासमिए जाव बंभयारी, से णं तत्थ बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववजिहिइ, से णं तओ अणंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे जाई कुलाई भवंति अड्डाई....जहा दढपइण्णे सा चेव वत्तव्वया कलाओ जाव सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ।
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि॥३७॥
॥ पढमं अज्झयणं समत्तं॥ । कठिन शब्दार्थ - कहिं - कहां पर, गमिहिइ - जायगा, उववज्जिहिइ - उत्पन्न होगा, वेयड्डगिरि पायमूले - वैताढ्य पर्वत की तलहटी में, सीहकुलंसि - सिंह कुल में, साहसिएसाहसी, समज्जिणइ - एकत्रित करेगा, सरीसवेसु - सरीसृपों में, मच्छ - मत्स्य, कच्छभ - कच्छप, गाह - ग्राह, मगर - मगर मच्छं, सुंसुमाराईणं - सुंसुमार आदि की, अद्धतेरसजातिकुलकोडीजोणिपमुहसयसहस्साई - जाति प्रमुख साढे बारह लाख कुल कोटियाँ, जोणीविहाणंसि- योनि विधान में-योनि भेद में, अणेगसयसहस्सक्खुत्तो - लाखों बार, उद्दाइत्ता- उत्पन्न हो कर, चउप्पएसु - चतुष्पदों-चौपायों में, कडुयरुक्खेसु - कटु-कड़वे वृक्षों में, कडुयदुद्धिएसु - कटु दुग्ध वाले अर्कादि वनस्पतियों में, उम्मुक्कबालभावे - त्याग दिया है बालभाव-बाल्यावस्था को, पढमपाउससि - प्रथम वर्षा ऋतु में, खलीणमट्टियं - किनारे पर स्थित मिट्टी का, खणमाणे - खनन करता हुआ, तडीए - किनारे के गिर जाने पर, पेल्लित्तेसमाणे - पीड़ित होता हुआ, सिट्टिकुलंसि - श्रेष्ठि के कुल में, जोव्वणगमणुप्पत्ते - यौवन अवस्था को प्राप्त, इरियासमिए - ईर्या समिति से युक्त, सामण्णपरियागं - श्रमण पर्याय का, पाउणित्ता - पालन कर, आलोइयपडिक्कंते - आलोचना तथा प्रतिक्रमण कर, अट्ठाई - आढ्य-संपन्न, सिज्झिहिइ - सिद्ध पद को प्राप्त करेगा, बुज्झिहिइ - केवलज्ञान के
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