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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
भावार्थ - उस वाणिज्यग्राम नगर में संपूर्ण पंचेन्द्रियों से युक्त शरीर वाली, यावत् सुरूपा-परम सुंदरी, ७२ कलाओं में प्रवीण, गणिका के ६४ गुणों से युक्त, २६ प्रकार के विशेषों-विषय के गुणों में रमण करने वाली, २१ प्रकार के रति गुणों में प्रधान, ३२ पुरुष के . उपचारों में निपुण, जिसके प्रस्तुत नव अंग जागे हुए हैं, १८ देशों की भाषा में विशारद, जिसकी सुंदर वेषभूषा श्रृंगार रस का घर बनी हुई है एवं गीत, रति और गान्धर्व, नाट्य तथा नृत्य कला में प्रवीण, सुंदर गति-गमन करने वाली, कुचादिगत सौन्दर्य से सुशोभित, गीत, नृत्य आदि कलाओं से हजार मुद्रा कमाने वाली, जिसके विलास भवन पर ऊंची ध्वजा लहरा रही थी, जिसको राजा की ओर से पारितोषिक रूप में छत्र तथा चामर-चंवर, बालव्यजनिका (चंवरी या छोटा पंखा) मिली हुई थी और जो कीरथ में गमनागमन किया करती थी, ऐसी कामध्वजा नाम की एक गणिका (वेश्या) जो कि हजारों गणिकाओं पर आधिपत्य-स्वामित्व करती हुई यावत् समय व्यतीत कर रही थी। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में कामध्वजा गणिका के सांसारिक वैभव का वर्णन किया गया है।
प्रभु का पदार्पण तत्थ णं वाणियगामे विजयमित्ते णामं सत्थवाहे परिवसइ अढे०, तस्स णं विजयमित्तस्स सुभद्दा णामं भारिया होत्था अहीण०, तस्स णं विजयमित्तस्स पुत्ते सुभद्दाए भारियाए अत्तए उज्झियए णामं दारए होत्था अहीण जाव सुरूवे। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे परिसा णिग्गया राया वि जहा कूणिओ तहा णिग्गओ धम्मो कहिओ परिसा पडिगयो राया य गओ॥४०॥
भावार्थ - उस वाणिज्यग्राम नगर में विजयमित्र नाम का एक धनी सार्थवाह-व्यापारी वर्ग का मुखिया निवास करता था। उस विजयमित्र की सर्वांग संपन्न सुभद्रा नाम की भार्या थी। उस विजयमित्र का पुत्र और सुभद्रा का आत्मज उज्झितक नाम का एक सर्वांग सम्पन्न और रूपवान् बालक था। . उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वाणिज्यग्राम नामक नगर में
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