________________
उज्झियए णामं बीयं अज्झयणं
उज्झितक नामक द्वितीय अध्ययन प्रथम अध्ययन में मृगापुत्र का वर्णन करने के बाद सूत्रकार ने प्रस्तुत सूत्र के उज्झितक नामक द्वितीय अध्ययन में आचरण हीनता का दुष्परिणाम बता कर आचरण शुद्धि के लिये बलवती प्रेरणा प्रदान की है। इस अध्ययन का प्रथम सूत्र इस प्रकार है -
उत्क्षेप-प्रस्तावना जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स दुहविवागाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते? |
तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबुं अणगारं एवं वयासी-एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे णामं णयरे होत्था रिद्धस्थिमियसमिद्धे। तस्स णं वाणियगामस्स उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए दूईपलासे णामं उजाणे होत्था। तत्थ णं दूइपलासे सुहम्मस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था। तत्थ णं वाणियगामे मित्ते णामं राया होत्था वण्णओ। तस्स णं मित्तस्स रण्णो सिरीणामं देवी होत्था वण्णओ॥३८॥ ____ भावार्थ - हे भगवन्! यदि मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाक के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो हे भगवन्! दुःखविपाक सूत्र के द्वितीय अध्ययन का मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने क्या अर्थ फरमाया है?
तदनन्तर सुधर्मा स्वामी ने जम्बू अनगार से इस प्रकार कहा कि - 'हे जम्बू! उस काल तथा उस समय में वाणिज्यग्राम नाम का एक समृद्धशाली नगर था। उस नगर के ईशानकोण में दूतिपलाश नाम का एक उद्यान था। उस उद्यान में सुधर्मा नामक यक्ष का एक यक्षायतन था। उस वाणिज्यग्राम नामक नगर में मित्र नाम का राजा था। वर्णन पूर्ववत् जानना। उस मित्र राजा की श्रीनाम की पट्टरानी थी। वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिये।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org