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प्रथम अध्ययन - रोगोपचार के प्रयास
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: भावार्थ - तदनन्तर वह ईकाई राष्ट्रकूट सोलह रोगांतकों से अत्यंत दुःखी हुआ कौटुंबिक पुरुषों-सेवकों को बुलाता है और बुला कर उनसे इस प्रकार कहता है कि - हे देवानुप्रियो! तुम जाओ और विजय वर्द्धमान खेट के श्रृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, महापथ और अन्य साधारण मार्गों पर जा कर बड़े ऊंचे स्वर से इस प्रकार घोषणा करो कि - हे देवानुप्रियो! ईकाई राष्ट्रकूट के शरीर में श्वास, कास आदि १६ भयंकर रोग उत्पन्न हो गये हैं। यदि कोई वैद्य या वैद्यपुत्र, ज्ञायक या ज्ञायक पुत्र, चिकित्सक अथवा चिकित्सक पुत्र उन सोलह रोगांतकों में से किसी एक भी रोगांतक को उपशान्त करे तो ईकाई राष्ट्रकूट उसको बहुत-सा धन देगा। इस प्रकार दो तीन बार उद्घोषणा करके मेरी इस आज्ञा के यथावत् पालन की मुझे सूचना दो। तब वे कौटुम्बिक पुरुष ईकाई राष्ट्रकूट की आज्ञानुसार विजय वर्द्धमान खेट में जाकर उद्घोषणा करते हैं और वापिस आकर ईकाई राष्ट्रकूट को उसकी सूचना दे देते हैं।
• रोगोपचार के प्रयास - तए णं (से) विजयवद्धमाणे खेडे इमं एयारूवं उग्घोसणं सोच्चा णिसम्म बहवे वेजा य वेज्जपुत्ता य जाणुया य जाणुयपुत्ता य तेगिच्छिया य तेगिच्छियपुत्ता य सत्थकोसहत्थगया सएहितो सएहितो गिहेहिंतो पडिणिक्खमंति-पडिणिक्खमित्ता विजयवद्धमाणस्स खेडस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव एक्काईरहकूडस्स गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एक्काईरहकूडस्स सरीरगं परामुसंति परामुसित्ता तेसिं रोगाणं णिदाणं पुच्छंति, पुच्छित्ता एक्काईरहकूडस्स बहूहिं अब्भंगेहि य उव्वट्टणेहि य सिणेहपाणेहि य वमणेहि य विरेयणेहि य सेयणेहि य अवदहणाहि य अवण्हाणेहि य अणुवासणाहि य बस्थिकम्मेहि च णिरूहेहि य सिरावेहेहि य तच्छणेहि य पच्छणेहि य सिरोबत्थीहि य तप्पणाहि य पुडपागेहि य छल्लीहि य मलेहि य कंदेहि य पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य बीएहि य सिलियाहि य गुलियाहि य ओसहेहि य भेसजेहि य इच्छंति तेसिं सोलसहं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, णो चेव णं संचाएंति उवसामित्तए॥२७॥
कठिन शब्दार्थ - उग्घोसणं - उद्घोषणा को, सोच्चा - सुन कर, णिसम्म - अवधारण
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