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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
स्पृहा-इच्छा करता हुआ, अहिलसमाणे - अभिलाषा करता हुआ, अट्ट - आर्त्त-मानसिक वृत्तियों से दुःखित, दुहट्ट - दुःखार्त-देह से दुःखी-शारीरिक व्यथा से आकुलित, वसट्टे - वशात-इन्द्रियों के वशीभूत होने से पीड़ित, अष्ट्वाइज्जाइं वाससयाइं - अढाई सौ वर्ष, परमाउयंपरमायु-संपूर्ण आयु, पालइत्ता - पालन कर, अणंतरं - अन्तर रहित, उव्वट्टित्ता - निकल कर, कुच्छिसि - कुक्षि में-उदर में, पुत्तत्ताए - पुत्र रूप से, उववण्णे - उत्पन्न हुआ। . ___भावार्थ - तदनन्तर वैद्यों के द्वारा प्रत्याख्यात अर्थात् इन रोगों का प्रतिकार हमसे नहीं हो सकता, इस प्रकार कहे जाने पर तथा सेवकों से परित्यक्त, औषध और भैषज्य से निर्विण्णदुःखित, सोलह रोगांतकों से अभिभूत, राज्य, राष्ट्र यावत् अंतःपुर में मूर्च्छित-आसक्त तथा राज्य और राष्ट्र का आस्वादन, प्रार्थना, इच्छा (स्पृहा) और अभिलाषा करता हुआ वह ईकाई आर्त (मनोव्यथा से व्यथित) दुःखार्त और वशार्त होकर जीवन व्यतीत करके २५० वर्ष की पूर्णायु को भोग कर यथासमय काल करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी-प्रथम नरक में उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ। तत्पश्चात् वह ईकाई का जीव भवस्थिति पूरी होने पर नरक से निकल कर मृगाग्राम में विजय क्षत्रिय की मृगावती देवी की कुक्षि में पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ। .
गर्भ का असर . तए णं तीसे मियाए देवीए सरीरे वेयणा पाउन्भूया उज्जला जाव दुरहियासा, जप्पभिई च णं मियापुत्ते दारए मियाए देवीए कुच्छिसि गब्भत्ताए उववण्णे तप्पभिई च णं मियादेवी विजयस्स खत्तियस्स अगिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा जाया यावि होत्था॥३०॥
कठिन शब्दार्थ - उज्जला - उत्कट, जलंता - जाज्वल्यमान-अति तीव्र, वेयणा - वेदना, पाउन्भूया - उत्पन्न हुई, जप्पभिई - जब से, तप्पभिई - तब से लेकर, अणिट्ठा - अनिष्ट, अकंता - अकांत-सौन्दर्य रहित, अप्पिया - अप्रिय, अमणुण्णा - अमनोज्ञ-असुंदर, अमणामा - अमनाम-मन से उतरी हुई।
भावार्थ - तदनन्तर उस मृगादेवी के शरीर में उज्जल (उत्कट) यावत् जाज्वल्यमान (अति तीव्र) वेदना उत्पन्न हुई। जब से मृगापुत्र नामक बालक मृगादेवी के उदर में गर्भ रूप से उत्पन्न
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