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प्रथम अध्ययन - गर्भ नाश का प्रयास
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हुआ तब से लेकर वह मृगादेवी विजय नामक क्षत्रिय को अनिष्ट, अमनोहर, अप्रिय, अमनोज्ञ और अमनाम-सी लगने लगी।
विवेचन - पापी जीव जहां भी जाता है वहां अनिष्ट ही अनिष्ट होता है। ईकाई का जीव नरक से निकल कर मृगादेवी की कुक्षि में आया तो उसके शरीर में तीव्र वेदना उत्पन्न हो गई और वह विजय नरेश की अप्रिय होने लगी।
गर्भ नाश का प्रयास तए णं तीसे मियाए देवीए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियाए जागरमाणीए इमे एयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था-एवं खलु अहं विजयस्स खत्तियस्स पुव्विं इट्ठा ५ धेजा वेसासिया अणुमया आसी, जप्पभिई च णं मम इमे गन्मे कुच्छिसि गन्मत्ताए उववण्णे, तप्पभिई च णं अहं विजयस्स खत्तियस्स अणिट्ठा जाव अमणामा जाया यावि होत्था, णिच्छइ णं विजए खत्तिए मम णामं वा गोयं वा गिण्हित्तए वा किमंग पुण दंसणं वा परिभोगं वा, तं सेयं खलु मम एवं गन्भं बहूहिं गन्भसाडणाहि य पाडणाहि य गालणाहि य मारणाहि य साडित्तए वा पाडित्तए वा, गालित्तए वा मारित्तए वा एवं संपेहेइ, संपेहित्ता बहूणि खाराणि य कडुयाणि य तूवराणि य गन्भसाडणाणि . य ४ खायमाणी य पीयमाणी य इच्छइ तं गन्भं साडित्तए वा ४ णो चेव णं से गन्मे सडइ वा पडइ वा गलइ वा मरइ वा॥३१॥
कठिन शब्दार्थ - पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि - मध्य रात्रि में, कुडुंब जागरियाए - कुटुम्ब जागरणा-कुटुम्ब की चिन्ता से, जागरमाणीए - जागती हुई, अज्झथिए - विचार, समुप्पण्णे - उत्पन्न हुआ, इट्ठा - इष्ट-प्रीतिकारक, धेज्जा - चिन्तनीय, वेसासिया - विश्वासपात्र, अणुमया- अनुमत, गिण्हित्तए - ग्रहण करना-स्मरण करना भी, सेयं - श्रेयस्कर, गब्मसाइणाहि - गर्भशातनाओं-गर्भ को खण्ड खण्ड करके गिराने रूप क्रियाओं से, पाडणाहिपातनाओं-अखण्ड रूप से गिराने रूप क्रियाओं से, गालणाहि - गालनाओं-द्रवीभूत करके गिराने रूप क्रियाओं से, मारणाहि - मारणाओं-मारण रूप क्रियाओं द्वारा, संपेहेइ - विचार
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