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प्रथम अध्ययन - मृगादेवी की कुक्षि में
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तथा पुटपाक, त्वचा, मूल, कन्द, पत्र, पुष्प, फल और बीज तथा शिलिका (चिरायता) के उपयोग से तथा गटिका. औषध. भैषज्य आदि के प्रयोग से प्रयत्न करते हैं अर्थात इन पूर्वोक्त साधनों का रोगोपशांति के लिये उपयोग करते हैं किंतु नानाविध उपचारों से वे उन १६ रोगों में से किसी एक भी रोग को उपशांत करने में समर्थ न हो सके।
तए णं ते बहवे वेज्जा य वेज्जपुत्ता य जाहे णो संचाएंति तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया॥२८॥
कठिन शब्दार्थ - संता - श्रान्त-देह के खेद से खिन्न, तंता - तांत-मन के दुःख से दुःखित, परितंता - परितांत-शरीर और मन दोनों के खेद से खिन्न।
भावार्थ - जब उन वैद्य और वैद्यपुत्रादि से उन १६ रोगांतकों में से एक रोगांतक का भी उपशमन न ह्ये सका तब वे वैद्य और वैद्यपुत्र आदि श्रान्त, तान्त और परितान्त हो कर जिधर से आये थे उधर ही चल दिये।
मृगादेवी की कुक्षि में ___ तए णं एक्काईरहकूडे वेजेहि य ६ पडियाइक्खिए परियारगपरिच्चत्ते णिविट्टोसहभेसजे सोलसरोगायंकेहिं अभिभूए समाणे रज्जे य रट्टे य जाव अंतेउरे य मुच्छिए रज्जं च रटुं च आसाएमाणे पत्थेमाणे पीहेमाणे अभिलसमाणे अदृदुहवसट्टे अहाइजाइं वाससयाइं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं सागरोवमट्टिइएसु रइएसु णेरइयत्ताए उववण्णे।
से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव मियग्गामे णयरे विजयस्स खत्तियस्स मियाए देवीए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववण्णे॥२६॥
. कठिन शब्दार्थ - पडियाइक्खिए - प्रत्याख्यात-निषिद्ध किया गया, परियारगपरिचत्ते - परिचारकों (नौकरों) द्वारा परित्यक्त, णिविण्णोसहभेसज्जे - औषध और भैषज्य से निर्विण्णविरक्त, आसाएमाणे - आस्वादन करता हुआ, पत्थेमाणे - प्रार्थना करता हुआ, पीहेमाणे -
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