Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थ लोक वार्तिके
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सभी मिथ्याज्ञान विकल्पज्ञानरूप ही हैं । अतः स्वरूपमें वे जैसे प्रमाण हैं, वैसे बहिरंग अर्थमें भी प्रमाण हैं, किसीका यह कहना भी अयुक्त है। क्योंकि बौद्धोंको अभीष्ट प्रकरणप्राप्त प्रत्यक्ष और अनुमान इन दो प्रमाणोंसे अतिरिक्त तीसरे न्यारे प्रमाणकी सिद्धि होनेका प्रसंग हो जायगा । बौद्धोंने विकल्पज्ञानको प्रमाण नहीं माना है। अधिक ऊष्मके कारण तमारा आजानेपर तिमिर दोषसे अनेक भ्रान्तज्ञान होते हैं । शीघ्र शीघ्र भ्रमण चक्कर करनेसे भी घुमारी आकर अनेक पदार्थ घूमते हुये देखते हैं । नावमें बैठकर चलनेपर भी दिग्भ्रम हो जाता है विशेष क्षोभका कारण उपस्थित होनेपर विपरीतज्ञान हो जाते हैं । अत्यन्तप्रिय पदार्थ के वियोग, सन्निपात, चाकचक्य, धतूरपान, अपस्मार ( मृगी ) आदि कारणोंसे उत्पन्न हुये विभ्रम ज्ञानोंको यदि प्रत्यक्ष प्रमाण मानलिया प्रत्यक्षके लक्षण में दिया गया अभ्रान्त यह विशेषण व्यर्थ पडता है । अर्थात् — कल्पनापोढमभ्रान्तं प्रत्यक्षं " इस प्रत्यक्षके लक्षण में भ्रमभिन्नपना विशेषण जो मिथ्याज्ञानोंके निवारणार्थ दिया है, मिथ्याज्ञानोंको प्रमाण माननेपर वह व्यर्थ पडता है । बौद्ध अब सिद्धान्त दोषको नहीं सह सकेंगे ।
जायगा
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तस्याप्यभ्रांत तोपगमे कुतो विसंवादित्वं विकल्पज्ञानस्य च प्रत्यक्षत्वे कल्पनापोढं प्रत्यक्षमिति विरुध्यते तस्यानुमानत्वे अक्षादिविकल्पस्यानुमानत्वप्रसंगस्तस्यालिंगजत्वादननुमानत्वे प्रमाणांतरत्वमनिवार्यमिति मिथ्याज्ञानं स्वरूपे प्रमाणं बहिरर्थे स्वप्रमाणमित्यभ्युपगंतव्यं । तथा च सिद्धं देशतः प्रामाण्यं । तद्वदवितथवेदनस्यापीति सर्वमनवद्यं एकत्र प्रमाणत्वाप्रमाणत्वयोः सिद्धिः ।
यदि बौद्ध उस मिथ्याज्ञानरूप विकल्पज्ञानको भी अभ्रान्तपना स्वीकार करलेंगे तो विकल्पज्ञानको विवादपना कैसे ठहर सकेगा ? अभ्रान्तज्ञान यों तो अविसम्बादी हो जायगा और विकल्पज्ञानको प्रत्यक्षपना यदि इष्ट करलिया जायगा तो ऐसा होनेपर कल्पनाओंसे रहित प्रत्यक्ष प्रमाण होता है । यह तुम्हारा अभीष्ट लक्षणवाक्य विरुद्ध होगा । अतः विकल्पज्ञान प्रत्यक्षप्रमाण तो हो नहीं सकता है । यदि उस विकल्पज्ञानको अनुमान प्रमाण मानोगे तो इन्द्रिय, मन, आदिसे उत्पन्न हुये विकल्पज्ञानको अनुमानपनेका प्रसंग होगा । यदि अविनाभावी हेतुसे जन्यपना नहीं होनेके कारण अक्ष आदि विकल्पको अनुमान प्रमाण नहीं मानोगे तो प्रत्यक्ष और अनुमान से भिन्न तीसरा प्रमाण मानना अनिवार्य होगा । इस कारण यही बढिया उपाय है कि अपने स्वरूपको जाननेमें मिथ्याज्ञान प्रमाण है | और बहिरंग चांदी, जल, घूमना आदि विषयोंके जाननेमें तो अप्रमाण है । यह स्वीकार करलेना चाहिये और तिस प्रकार माननेपर तो मिथ्याज्ञानमें भी एकदेशसे प्रमाणपना सिद्ध हो जाता है । एक चन्द्रको दो समझना, शुक्कशंखको पीला शंख जानलेना, इन मिथ्याज्ञानों में तो कुछ विषय अंश में भी थोडीसी प्रमाणता है । उसी मिथ्याज्ञान के समान समीचीनज्ञानको भी एक देशसे प्रमाणपना है । किन्तु मिथ्याज्ञानके प्रमाणपन से सम्यग्ज्ञानमें प्रमाणपन अति अधिक है । जैसे कि