Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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नहीं होनेसे साध्यका बोधक नहीं है । उसी प्रकार तुम्हारे यहां सामान्यतो दृष्ट नामका, अन्वयव्यतिरेकवाला वह हेतु भी साध्यका गमक न हो सकेगा।
तद्विरुद्ध विपक्षेऽस्यासत्त्वे व्यवसितेपि हि । तदभावेत्वनिर्णीते कुतो निःसंशयात्मता ॥ २०१॥ यो विरुद्धोत्र साध्येन तस्याभावः स एव चेत् । ततो निवर्तमानश्च हेतुः स्याद्वादिनां मतम् ॥ २०२॥
उस साध्यवान्से विरुद्ध विपक्षमें इस हेतुका अविद्यमानपना निर्णीत होनेपर भी उस साध्यके अभाव होनेपर हेतुके अभावका जबतक केवलान्वयी हेतुमें निर्णय नहीं हुआ है, तो तबतक संशयस्वरूपसे रहितपना भला कैसे कहा जा सकता है ! यदि नैयायिक यों कहें कि जो यहां साध्यसे विरुद्ध है, वही तो उस साध्यका अभाव है। यों कहनेपर तो हम जैन कहेंगे कि उस विरुद्धसे निवृत्त हो रहा हेतु मान लिया यही तो स्याद्वादियोंका सिद्धान्त है । यहांतक हेतुके दो भेदोंका विचार कर दिया गया है।
अन्वयव्यतिरेकी च हेतुर्यस्तेन वर्णितः । पूर्वानुमानसूत्रेण सोप्येतेन निराकृतः ॥२०३॥
उन नैयायिकों द्वारा पहिलेके अनुमानसूत्रकरके जो " पूर्ववत् शेषवत् सामान्यतो दृष्ट स्वरूप अन्वयव्यतिरेकवाले हेतुका वर्णन किया गया है, वह भी इस उक्त कथन करके खण्डित कर दिया गया है। जैसे कि पर्वतो वह्निमान् धूमात्, यहां " हेतुमनिष्ठात्यन्ताभावाप्रतियोगि साध्यसामानाधिकरण्य "रूप अन्वयव्याप्ति है । हेतुमान्में रहनेवाला जो अभाव उसका प्रतियोगी नहीं बननेवाले साध्यके साथ हेतुका समानाधिकरणपना अन्वय है । प्रसिद्ध उदाहरण यह है कि धूमवान् आधार पर्वत, रसोईघर, अधियाना, आदि हैं। उनमें आग्निका अभाव तो रहता नहीं है। हां, जल, मणि, घोडा, सिंह आदिका अभाव है । इन अभावोंके षष्ठीविभक्तिवाले प्रतियोगी जल आदिक हैं । अप्रतियोगी वह्नि है । उसका समानाधिकरणपना धूममें है । अतः धूमहेतुमें अन्वय व्याप्ति है। यहां रसोईघर आदिक अन्वयदृष्टान्त हैं। तथा " साध्याभावव्यापकीभूताभावप्रतियोगित्वरूपव्यतिरेकव्याप्ति भी धूमहेतुमें विद्यमान है। यहां साध्याभाव पदसे लिया वहिका अभाव उसका व्यापक होरहा अभाव धुआंका अभाव है । क्योंकि थोडे देशमें रहनेवाले व्याप्यका अभाव अधिकदेशमें रह जानेके कारण व्यापक हो जाता है। और अधिक देशमें रहनेवाले व्यापकका अभाव थोडे देशमें वर्तनेसे व्याप्य हो जाता है । जैसे कि शीशम व्याप्य है, और वृक्ष व्यापक है, किन्तु नीम, आम, जामुन के पेडोंमें शीशोपनका अभाव है, वृक्षपनका अमाव नहीं है । अतः शीशोंका