Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ लोकवार्तिके
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जायगा,
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वैशेषिक कहते हैं कि स्फटिक, काच आदिकका अतिशीघ्र उत्पाद और विनाश हो जाने से सादृश्य अनुसार भ्रान्ति के वश निरन्तर एकपनेरूप अमेदको ग्रहण करना तो सदा देखनेवाले पुरुषके उन स्फटिक आदिके छेदनभेदन स्वीकार करनेका बाधक नहीं है। अर्थात् - घण्टों तक निरन्तर देखनेवाले पुरुषके स्फटिक आदिका शीघ्र उत्पाद और विनाश हो जानेके कारण यह वही स्फटिक है " ऐसा सादृश्यके वश अभेद ज्ञान हो गया है। वस्तुतः देखा जाय तो वह स्फटिक सदा चक्षुकी किरणोंसे छिद भिद रहा है । अतः उस सादृश्यमूलक एकत्व ग्रहणसे वैशेषिकद्वारा स्फटिकका भिद जाना स्वीकार करना नहीं बाधा जा सकता है। आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार वैशेषिकों अथवा नैयायिकों का कहना अयुक्त है। क्योंकि इस ढंगसे तो वहां शीघ्र ही दर्शन और अदर्शन हो जानेका प्रसंग हो जायगा । तथा स्पर्शन और अस्पर्शन हो जानेका भी प्रसंग होगा । भावार्थ – अर्थात् — आंखोंसे एक हाथ दूरपर रखे हुये स्फटिकको हम आंखों से देख रहे हैं, हाथ से छू रहे हैं । यदि स्फटिकका उस समय वहां शीघ्र उत्पाद एवं विनाश माना तो स्फटिककें नष्ट होनेपर उसका अदर्शन और अस्पर्शन होना चाहिये । यानी देखना, छूना, बीच बीचमें रुक जाना चाहिये । और उत्पन्न हो जानेपर पुनः देखने, छनेका प्रारम्भ होना चाहिये । तथा नष्ट हो जानेपर देखना छूना शीघ्र रुक जाना चाहिये । जैसे कि कितने ही बार आंखको शीघ्र मीचने और खोलने पर सन्मुखस्थित पदार्थका दर्शन और अदर्शन होते रहते हैं । अथवा कई बार शीघ्र मिलानेपर और अलग करनेपर देरतक क्रमसे स्पर्शन, अस्पर्शन होते छूये जा रहे और आंखों से देखे जा रहे स्फटिकका शीघ्र शीघ्र दर्शन, अदर्शन और झट स्पर्शन अस्पर्शन, होता रहना चाहिये । किन्तु वहां स्फटिकका चाक्षुषप्रत्यक्ष और स्पार्शनप्रत्यक्ष करने में उपयोग लगा रहे किसी भी जीवके हो रहे दर्शन और स्पर्शन तो अदर्शन और अस्पर्शनसे व्यव• हित हो रहे समीचीन नहीं अनुभूत किये जा रहे हैं। किन्तु स्फटिकको देखने छूनेवाला मनुष्य बडी देर तक उसी स्फटिकको देखता, छूता रहता है। ऐसा नहीं है कि जैसे बिजलीके लेम्पका बटन दबाने और खोलने, फिर झट दबाना तथा उठाना ऐसी देस्तक क्रिया करनेसे विद्युत् प्रदीप के दर्शन अदर्शन दोनों क्रमसे झट झट होते रहते हैं अथवा पानीके नलकी टोंटी खोलने और बन्द करनेका देरतक व्यापार करनेपर झटझट पानीके छूने नहीं छूनेका स्पार्शन प्रत्यक्ष क्रमसे होता रहता है । किन्तु ऐसा स्फटिकमें नहीं होता है । अतः स्फटिक या शीशीका शीघ्र उत्पाद, विनाश, मानना अनुचित है ।
शीघ्र
शीघ्र हाथको घट या तबलासे रहते हैं । प्रकृतमें भी हाथसे
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तद्विनाशस्य पूर्वोत्तरोत्पादाभ्यामाशुभाविभ्यां तिरोहितत्वान्न तत्रादर्शनमस्पर्शनं वा स्यादिति चेत् । नन्वेवं तदुत्पादस्य पूर्वोत्तरविनाशाभ्यामाशु भाविभ्यामेव विरोधानदर्शनस्पर्शने माभूतां ।