Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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घुसा हुआ है ? बताओ । इसपर यदि मीमांसक यों कहें कि बुद्ध आदिक तो आगमके अर्थका विशद प्रत्यक्ष कर उस अर्थके वक्तों है। अतः वे तो आणुमके 'बनानेवाले कर्ता ही समझे जायेंगे, किन्तु वेद हमारे माने हुये वक्ताओं द्वारा अतीन्द्रिय अथका प्रत्यक्ष नहीं हो पाता है । अतः वेदके अध्येता या अध्यापक केवल अनुवादक समझे जायेंगे। इस प्रकार मीमांसकोंके कहनेपर तो हम जैन कहते हैं कि वैदिक अनि शद्वका और लौकिक अग्नि इत्यादि शब्दोंका जो कोई वक्ता है, वही वक्ता अनि इस शद्वका कर्ता है । और तैसा ही अग्निशद्व वेदमें सुना जा रहा | अतः वहां भी कर्ता समझा जायगा, अतः सहस्र शाखावाला वेद स्वर्गमें पहिले ब्रह्माकर के बहुत दिनतक पढ़ा जाता है । फिर वहांसे उतर कर मनुष्यलोक में मनु आदि ऋषियोंके लिये प्रकाश दिया जाता है। और फिर स्वर्गमें जाकर चिरकाल पढा जाता है। यह ब्रह्मा, मनु, आदिकी संतान अनादिसे चली आ रही मानना व्यर्थ है । जबतक मूलमें कोई अतीन्द्रिय अर्थोका विशद प्रत्यक्ष करनेवाला नहीं माना जायगा, तबतक अन्धपरम्परासे तैसा ज्ञानं चला आना असम्भव है । arrhea अनेक पण्डित या व्याख्याता रागी, द्वेषी, अज्ञानी, होते चले आये हैं, तभी तो हिंसा, अहिंसावादी, भावना - नियोगवादी, ब्रह्मकर्मवादी, आदिक भेद अभीतक अड्डा जमाये हुये है । अतः वर्ण, पद, समुदायस्वरूप वेदका कर्ता मानना अनिवार्य है ।
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पराभ्युपगमात्कर्ता स चेद्वेदे पितामहः ॥ ४६ ॥
तत एव न धातास्तु न वा कश्चित्समत्वतः । नानधीतस्य वेदस्याध्येतास्त्यध्यापकाद्विना ॥ ४७ ॥ न सोस्ति ब्राह्मणोत्रादाविति नाध्येतृतागतिः ।
यदि मीमांक यों कहें कि बुद्ध, नैयायिक, आदिक दूसरे विद्वानोंने तो अपने अपने आगमके कर्ता स्वयं बुद्ध आदिक स्वीकार किये हैं । अतः दूसरोंके कहने से ही उन आगमोंका वह कर्ता माना जा चुका है । इस प्रकार कहनेपर तो हम स्याद्वादी कहेंगे कि वेदमें भी वैशेषिक विद्वान् ब्रह्माको कर्ता मानते हैं । इस अंशमें उनका स्वीकार करना क्यों नहीं मान लिया जाता है ! यदि मीमांसक यों कहें कि तिस ही कारण विधाता भी कर्ता नहीं रहो तथा और भी कोई वेदका कर्ता नहीं रहो, क्योंकि सब अतीन्द्रिय ज्ञानसे रहित होते हुये सम ( एकसे ) हैं । पहिले नहीं पढे हुये वेदका अध्ययन करनेवाला कोई भी छात्र तो पढानेवाले अध्यापकके विना अध्ययन नहीं कर पाता है । ग्रन्थकार कहते हैं कि यह तो मीमांसकोंको नहीं कहना चाहिये | क्योंकि यहां इस युगकी आदिमें कोई ऐसा ब्राह्मण नहीं है, या ब्रह्मा सिद्ध नहीं है, जिसका कि पढनेवालापन जान लिया जाय । अतः वेदके अध्येतापनका ज्ञान नहीं हो सकता है ।
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