Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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चोदीका ज्ञान ( प्रत्यक्षाभास ) अप्रमाण है । श्रुत प्रमाण नहीं है, उसमें बाधकोंका उत्थान हो जाता है। जैसे कि सीपमें हुये चांदीके ज्ञानमें " यह चांदी नहीं है " इस प्रकारका बाधकप्रमाण उठ बैठता है ( व्यतिरेकदृष्टान्त ) ।
नापेक्षं संभवद्वाधं देशकालनरांतरं । स्वेष्टज्ञानवदित्यस्य नानैकांतिकता स्थितिः ॥ ७८ ॥
मीमांसकों के यहां अपने अभीष्ट प्रत्यक्ष आदि ज्ञानोंमें जैसे बाधकोंकी सम्भावना नहीं है । उसी प्रकार समीचीन श्रुतमें भी देशान्तर में या दूसरे कालोंमें अथवा अन्य पुरुषोंकरके बाधायें सम्भवनेकी अपेक्षा नहीं है। अग्नि यहां उष्ण है तो सम्राट् या इन्द्रके यहां भी उष्ण मिलेगी । ढेंकी यदि स्वर्ग या नरकमें भी चली जाय तो वहां भी कूटनेका काम करेगी। इस कालमें जैसे हितैषी पुरुष परोपकार करते हैं, काळान्तरोंमें भी वे या वैसे पुरुष परोपकृतिपरायण रहते हैं । याधुनिक ऐहिक पुरुषोंके समान देशान्तर, काळान्तरके मनुष्य भी एकसी प्रमाणपन, अप्रमाणपनकी व्यवस्था करते हैं । अतः समीचीन श्रुत तो सभी देश सम्पूर्णकाल और अखिल व्यक्तियोंकी अपेक्षासे बाधारहित है । अतः सुविश्वतासम्भवद्बाधकपन इस हेतुके व्यमिचारीपनकी व्यवस्थिति नहीं हो सकी ।
न च हेतुरसिद्धोयमव्यक्तार्थवचोविदः । प्रत्यक्षबाधनाभावादनेकांते कदाचन ॥ ७९ ॥ अनुमेयेऽनुमानेन बाधवैर्यनिर्णयात् । तृतीयस्थानसंक्रांते त्वागमावयवेन च ॥ ८० ॥
और यह असम्भवद्बाधकपना हेतु असिद्ध हेत्वाभास भी नहीं है। यानी पक्षमें ठहर जाता है । अव्यक्त यानी अविशदरूपसे अर्थको कहनेवाले वचनोंसे उत्पन्न हुये श्रुतज्ञानकी प्रत्यक्ष प्रमाणों द्वारा बाधा हो जानेका अभाव है। समीचीन शास्त्रद्वारा कहे गये अनेकान्तमें किसी कालमें भी प्रत्यक्षप्रमाणोंसे बाधा उपस्थित नहीं होती है । अनेकान्तवादी जैनों द्वारा शास्त्रसिद्ध अनेकान्तका अनुमान करलिया जाता है । अतः अनुमान प्रमाणसे जानलिये गये अनेकान्तमें अनुमानकरके भी बाधा आजानेके रहितपनेका निर्णय हो रहा है । और प्रत्यक्ष, अनुमान इन दो प्रमाणोंसे न्यारे तीसरे आगमगम्य स्थान में संक्रान्त हो रहे प्रमेयमें तो आगम प्रमाणोंके भागकरके बाधारहितपनेका निर्णय हो रहा है। भावार्थ — प्रत्यक्ष योग्य, अनुमानगोचर और आगमविषय पदार्थोंमें प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, प्रमाण तो प्रत्युत श्रुतके साधक हो रहे हैं। वे समीचीन श्रुतके कमी बाधक नहीं है । पहिले प्रत्यक्षित और दूसरे अनुमेय पदार्थोंसे अतिरिक्त हो रहे परोक्ष, अत्यन्तपरोक्ष, सम्पूर्ण
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