Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 670
________________ तत्वार्थकोकवार्तिके ( फल ) है । अथवा बनमें दीख रहा यह पशुपिंड ही वह गवयपदसे वाच्य है । इस प्रकार ज्ञान होना सादृश्य उपमानका फल है। अथवा यह अंगुलीनिर्दिष्ट भैंसा, ऊंट आदिक पशु उस गवय शब्दके वाच्य नहीं हैं। इस प्रकार वैसादृश्य-उपमानका फल हैं । प्रसिद्ध पदार्थके समान धर्म अथवा विलक्षण धर्मसहितपनकी उपमाको कहनेवाले वाक्य, संकेत, चित्रदर्शन, आदिका अनुभव कर पुनः भावना संस्कार रखनेवाले प्रतिपाद्य ( शिष्य ) के उपमानज्ञान उत्पन्न होता है। इस प्रकार दो प्रकारके उपमानको जो नैयायिक शब्दप्रमाणसे न्यारा प्रमाण अच्छे ढंगपूर्वक बखान रहे हैं, उनके यहां दो, छत्तीस आदिक संख्याओंका ज्ञान भी न्यारा प्रमाण हो जायगा । देखिये, गणित विद्याको जाननेवाले विद्वान्करके कहे गये संख्याओंके वाक्योंका संस्कार धारण किये हुये प्रतिपाद्यको पुनः दो आदि संख्यावाले नवीन स्थलोंपर वैसी संख्याओंसे विशिष्ट हो रहे द्रव्योंके देखनेसे ये दो दूनी चार हैं, ये पन्द्रह छक्का नब्बे रुपये हैं, इत्यादिक उसी प्रकार पहिले देखे हुये उन दो आदि संख्याओंके समान हैं, इस प्रकार संज्ञा संत्रियोंके सम्बन्धकी प्रतिपत्ति हो जाती है। वह दो आदि संख्याओंका ज्ञानखरूप प्रमाणका फल है, यह अतिप्रसंग समझ लेना चाहिये । ___तथोत्तराधर्यज्ञानं सोपानादिषु, स्थविष्ठमानं पर्वादिषु, महत्वज्ञानं खवंशादिषु, दविष्ठज्ञानं चंद्रार्कादिष्वल्पत्वज्ञानं सर्पपादिषु, लधुत्वज्ञानं तूलादिषु, प्रत्यासत्रज्ञानं स्वग्रहादिषु, संस्थानज्ञानं व्यस्त्यादिषु, बक्रादिज्ञानं च कचित्रमाणांतरमायातं । __तथा सोपान ( जीना ) नसैनी, पटल, श्रेणी ( कक्षा) आदिमें ऊपर नीचेपनका ज्ञान भी मिन प्रमाण मानना पडेगा । पंवोली, गांठ, सन्दूक, आदिमें अधिक स्थूलपनका ज्ञान और अपने घरके बांस, इक्षुदण्ड, कपाट, आदिमें महान्पनका ज्ञान तथा चन्द्रमा, सूर्य, मंगल, आदिकोंमें बहुत दूरपनेका ज्ञान एवं सरसों, तिल, बाजरा, वटवीज आदिमें अल्पपनेका ज्ञान और रूई, फसूकर, फेन आदिमें हलकेपनका ज्ञान तथा अपने गृह, बाग, कोठी, आदिमें निकटवतींपनेका ज्ञान तथैव तिकौनिया या तिकोने, चौकोने, गोल, लम्बे, आदि आकारवाले पदार्थोमें तैसी पहिले दिखाई गयी रचनाका ज्ञान तथा कहीं कहीं लकुट, लेखनी आदिमें टेडेपन, सूधेपन आदिके ज्ञान भी दूसरे न्यारे न्यारे प्रमाण बन जायंगे । यह प्रसंग आकर प्राप्त हो गया । सहारनपुरमें चार बजे बम्बईसे डाक गाडी आती है । यह सुनकर पुनः किसी दिन चार बजे स्टेशनपर जाकर वहां खडी हुयी गाडीको देखकर बम्बईसे आई हुयी डाकगाडीका धान कर लिया जाता है। सामुद्रिक शास्त्र या ज्योतिषशास्त्र के अनुसार चिन्होंको देखकर विद्या, आयुष्य, धन, पुत्र, आदिकी प्राप्तिका बान कर लिया जाता है । नैयायिकोंके यहां ये सब न्यारे प्रमाण बन बैठेंगे । सादृश्य उपमान या बडी प्रेरणा होनेपर माने गये वैसादृश्य-प्रत्यभिज्ञानमें तो इनका अन्तर्माव हो नहीं सकता है। .

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