Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 638
________________ ६२. तखार्थोकवार्तिके पदवाक्यात्मकत्वाच भारतादिवदन्यथा ॥ २॥ तदयोगाद्विरुध्येत संगिरौ च महानसः।। सर्वेषां हि विशेषाणां क्रिया शक्या वचोचरे ॥ ६३ ॥ वेदवाक्येषु दृश्यानामन्येषां चेति हेतुता । युक्तान्यथा न धूमादेरग्न्यादिषु भवेदसौ ॥ ६४ ॥ ततः सर्वानुमानानामुच्छेदस्ते दुरुचरः। तिस कारण नय या युक्तियोंकी शक्तिसे वेदके अकृत्रिमपनेकी सिद्धिका अभाव हो जामेसे वेद पौरुषेय सिद्ध हो जाता है । वेदका सबसे पहिले पढनेवाला विद्वान ही ( पक्ष ) उसका कर्ता है ( साध्य ) मानस मतिज्ञान या उसके भी पूर्ववर्ती विद्वानोंके शास्त्रश्रवणरूप मतिकानको पूर्ववती कारण मानकर उत्पन्न होनेसे ( हेतु ) भारत, भागवतपुराण, रत्नकरण्ड आदि ग्रन्थोंके समान । अथवा दूसरा अनुमान यों कर लेना कि वेदका प्रथम अध्येता ही (पक्ष ) वेदका कर्ता है ( साध्य ), पद, वाक्य, आत्मकपना होनेसे ( हेतु ) जैसे कि महाभारत, मनुस्मृति आदि ग्रन्थ सकर्तृक हैं। अर्थात्-मतिपूर्वकपना होने और वर्ण, पद, वाक्यस्वरूप होनेसे वेद पौरुषेय है। पुरुषके कण्ठ, तालु, आदि स्थान या प्रयत्नोंसे नवीन बनाया गया है । अन्यथा यानी वेदको सकर्तृक माने विना उस मतिपूर्वकपनेका और पद, वाक्य, आत्मकपनेका विरोध हो जावेगा ( व्यतिरेक व्याप्ति ), जैसे कि लम्बे चौडे पर्वतमें या बढिया पर्वतमें महानसका विरोध है, जिस कारण कि सम्पूर्ण विशेषोंकी क्रिया अन्य वचनोंमें की जा सकती है । भावार्य-एक भ्रमण या गमनक्रियाको देखकर वैसी दूसरी क्रियाओंमें भी सादृश्यमूलक ज्ञान कर लिया जाता है । ये ही दशा वेदवाक्योंमें समझ लेनी चाहिये । वेदवाक्योंमें भी देखे गये ( सुने गये ) अथवा अन्य सदृशशब्दोंको मी शाब्दबोध शापक हेतुपना युक्त है । अन्यथा यानी सादृश्य अनुसार दूसरे हेतुओंको ज्ञापकहेतु नहीं माना जायगा, तब तो आग्नि आदि साध्योंको साधनेमें दिये गये धूम आदिकोंको यह ज्ञापकहेतुपना नहीं बन सकेगा और तिस कारण तुम्हारे यहां सम्पूर्ण अनुमानोंका मूलोच्छेद हो जायगा । इसका उत्तर तुम अति कठिनतासे भी नहीं दे सकते हो । अतः श्रुतशब्दोंके सदृश शब्दोंको सुनकर भी शाब्दबोध हो जाता है। अतः वेदको अनित्य मानना ही श्रेष्ठ है। प्रमाणं न पुनवेदवचसोकृत्रिमत्वतः ॥ ६५ ॥ साध्यते चेद्भवेदर्थवादस्यापि प्रमाणता ।

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