Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थचिन्तामणिः
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यदि वैशेषिक यों कहें कि भले प्रकार बाधाओंसे रहित हो रहे प्रत्यक्ष प्रमाणकरके बहिरंग घट, पट, आदि वस्तुभूत अर्थोका दर्शन तो ज्ञानके भीतर प्रसिद्ध हो रहा है। दूसरे प्रकारोंसे यानी चारो ओर विज्ञानाद्वैतरूपसे नहीं कल्पित किया जा सकता है। इस प्रकार समाधान करनेपर तो हमारा भी यह उत्तर समानरूपसे लागू कर लो कि काच, स्फटिक, आदिसे ढके गये अर्थ में भी उसीका निर्वाध प्रत्यक्षप्रमाणकरके देतक देखना, छूना होता रहता है। एक अंगुल मोटे काच आदिसे ढके हुये एक अंगुल नीचे भिन्न देशवाले उस अर्थका बाधारहित होकर विशेषरूपसे निश्चय हो रहा है। इस कारण पदार्थको प्राप्त नहीं करती हुयी ही चक्षु पदार्थोंको जान लेती है ।
यथा मुखं निरीक्षते दर्पणे प्रतिबिंबितम् ।
स्वदेहे संस्पृशंतीति बाधा सिद्धात्र धीमताम् ॥ ३२ ॥ तथा न स्फटिकांभोम्रपटलावृतवस्तुनि । स्वदेशादितया तस्य तदा पश्चाच दर्शनात् ॥ ३३ ॥
जिस प्रकार कि श्रृंगारी पुरुष या सौंदर्यगर्विता युबती अथवा सुरमा लगानेवाला अर्द्धवृद्ध जन प्रतिबिम्ब प्राप्त हो रहे मुखको तो दर्पण में देखते हैं और अपने शरीरमें उस मुखको भले प्रकार छूते हैं, कालापन दूर करते हैं, अंजन आदि लगाते हैं, इस प्रकारकी बाधा यहां बुद्धिमानोंके मत अनुसार सिद्ध मानी गयी है। अर्थात् अर्थका ज्ञान अन्यत्र होता है, और अर्थकी प्राप्ति दूसरे Freपर होती है । प्रतिबिम्ब प्राप्त मुखके ज्ञानमें जैसी बाधा उपस्थित है, तिस प्रकारकी बाधा तो स्फटिक, स्वच्छ जल, अभ्रक या शुक्ल बादलोंके पटल इनसे ढकी हुयी वस्तुके जानने में नहीं उपस्थित होती है। क्योंकि काच आदिकसे ढके हुये उन पदार्थोंका उस समय और पीछे कालों में भी उसी अपने देश, काल, अवस्था आदि सहितपनेकरके दर्शन होता रहता है । अर्थात् — दो अंगुल मोटी स्फटिकशिला के ऊपरसे दो अंगुल नीचे रखा हुआ पदार्थ वहांका वहीं वहका वही आगे पीछे दीखता रहता है । और स्फटिक शिला भी वही दीखती, छूती गयी है । अतः चक्षुका अप्राप्यकारीपना युक्तियोंसे सिद्ध है ।
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रहती है। टूट फूट नहीं
न च नयनरश्मयः प्रसिद्धाः प्रमाणसामर्थ्यादेः स्फटिकादीन् विभज्य घटादीन् प्रकाशयतीत्याह ।
दूसरी बात यह है कि नेत्रोंकी वे रश्मियां भी तो प्रमाणोंकी सामर्थ्य, युक्ति, दृष्टांत आदिक से प्रसिद्ध नहीं हुई है, जो कि स्फटिक, काच, आदिकोंको तोड फोडकर भीतरके बट, चित्र