Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
यदि वैशेषिक यों कहें कि उसी स्फटिककी उत्तर उत्तर सदृश पर्यायोंमें यह वही स्फटिक है, ऐसा वह स्फटिक अर्थ अनुमानसे ज्ञात हो जाता है । ठीक ठीक देखा जाय तो वह स्फटिकके सदृश है । भ्रान्ति हो जानेसे वही मान लिया जाता है । जैसे कि यह वही कलकी औषधि है। आचार्य कहते हैं कि सो यह तो नहीं कहना । क्योंकि उन दृष्टा, स्पृष्टा, जीवोंके हो रहे काच आदिकके बानको भ्रान्तपना नहीं है । बेय अर्थका ज्ञानमें आकार पडकर उपराग युक्त हो रहे विज्ञानका उद्भव हम स्याद्वादियों के यहां नहीं माना गया है । भावार्थ-स्फटिक, काच, आत्मा, ज्ञान, आदि सभी पदार्थोको क्षणिक माननेवाले बौद्ध तो ज्ञानमें अर्थका आकार क्षण क्षणमें न्यारा पडता हुआ मानते हैं । किन्तु हम स्याद्वादी ज्ञानको प्रतिबिम्बवाला साकार नहीं मानते हैं । और स्फटिक आदि अर्थोको क्षणमें नष्ट हो जानेवाले भी नहीं मानते हैं। इस पंक्तिका ऐदम्पर्य मेरी बुद्धिमें पूरा प्रतिभासित नहीं हुआ है। विशेष व्युत्पन्न पुरुष सत्य अर्थको विस्तार के साथ यथार्थ समझ लेवे । इस अज्ञान और कषायोंसे आकुल हो रहे आधुनिक ऐहिक संसारमें सभी जीव तो अगाधशास्त्रसमुद्रके अमेय प्रमेयरनोंके विज्ञ नहीं हैं । " न हि सर्वः सर्ववित्"।
प्राप्तस्यांतरितार्थेन विभिन्नस्यापरीक्षणात् ।
नार्थस्य दर्शनं सिध्ोदनुमा च तथैव वा ॥ २७ ॥ .. स्फटिक, काच, आदिसे व्यवहित हो रहे अर्थके साथ चारो ओरसे प्राप्त हो रही चक्षुके द्वारा टूटे, फटे, स्फटिकका दीखना नहीं होता है । अतः चक्षुद्वारा प्राप्त अर्थका देखना प्रत्यक्ष प्रमाणद्वारा सिद्ध नहीं हो सकेगा, और तिस ही प्रकारके पूर्वोक्त अनुमानद्वारा चक्षुका अप्राप्यकारित्व सिद्ध हो चुका है । अन्यथा बौद्धोंके समान वैशेषिकोंको क्षणिकवादकी शरण लेनी पडेगी।
नन्वत्यंतपरोक्षत्वे सत्यर्थस्यानुमागतेः । विज्ञानस्योपरक्तत्वे तेन विज्ञायते कथम् ॥ २८ ॥
वैशेषिक यदि यों कहें कि साकार-ज्ञानवादी बौद्धोंका क्षणिक तत्व माननेका सिद्धान्त तो ठीक नहीं है। क्योंकि परिशेषमें जाकर ज्ञानकी साकारतासे ही निर्वाह करते हुये शून्यवादमें विश्रान्ति लेनी पडेगी । अतः हम वैशेषिकोंके हृदयमें शंका है कि क्षणिक विज्ञान या परमाणु स्वलक्षणस्वरूप पदार्थोके अत्यन्त परोक्ष माननेपर बौद्धोंके यहां अर्थकी अनुमानद्वारा भी ज्ञप्ति कैसे होगी ? विज्ञानको अर्थ आकारसे प्रतिबिम्बित माननेपर उस ज्ञान करके अत्यन्त परोक्ष या भूत, भविष्यत्, अर्थ भला कैसे जाना जा सकता है ? इसका बौद्ध उत्तर दें।