Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तवार्थचिन्तामणिः
पदार्थ शुक्रविमान, चन्द्रमा, दर्पण, रांगकी कलईवाले भांड, हीरा, पना आदि विद्यमान हैं । उनको तो वैशेषिकोंने तैजस नहीं माना है । चंद्रमा आदिमें भी तेजोद्रव्यके कणोंका सद्भाव कल्पित करना यह उसी प्रकार भ्रान्तिरूप है, जैसे कि बर्फ, करका आदि जलीय पदार्थोमें कठिनपनेकी प्रतीतिको वैशेषिकोंने भ्रान्त मानलिया है । वस्तुतः हिम, ओला, आदिके काठिन्यका ज्ञान सम्यग्ज्ञान है। बात यह है कि प्रमाणोंकी सामर्थ्यसे उस सुवर्ण घटको तैजसपना प्रसिद्ध नहीं हो पाता है । अतः नहीं सिद्ध हुये दृष्टांत सुवर्णघटके बलसे चक्षुमें तैजसरूप और उष्णस्पर्श दोनोंका अनुम॒त होकर रह जाना सिद्ध नहीं हो सकता है। इस कारण वैशेषिकोंके पूर्वोक अनुमानसे चक्षुका तेजसपना सिद्ध नहीं हो सका, उक्त दृष्टान्त स्वयं ही सिद्ध नहीं हैं।
नोष्णवीर्यत्वतस्तस्य तेजसत्वं प्रसिध्यति ।
व्यभिचारान्मरीचादिद्रव्येण तैजसेन वः ॥ ५२ ॥
वैशेषिक कहते हैं कि चक्षु ( पक्ष ) तैजस है ( साध्य ) उष्णवीर्य सहितपना होनेसे (हेतु ) जैसे कि ज्वाला है अर्थात्-नेत्रमें अति उष्णशक्ति है । तृण, कंकरी, मच्छर, धूल आदिके पंड जानेपर आंख उसको शीघ्र नष्ट कर देती है। काले सर्प या दृष्टिविषसर्पकी आंखोंमें अत्यधिक उष्णता शक्ति है। आंखमें बूंद दो बूंद जल डाल देनेसे वह अतिउष्ण हो जाता है। नेवसे आंसू उष्ण ( गरम ) निकलते हैं । नेत्रकी तैजस शक्तिसे दृष्टिपात होकर बालक, दर्पण, संदर अवयव, भक्ष्य, पेय, पदार्थ दृष्टिदोषसे ग्रसित हो जाते हैं। आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार राणवीर्य युक्तपनेसे चक्षुका तैजसपना भी वैशेषिकोंके यहां नहीं प्रसिद्ध हो पाता है। क्योंकि मिरच, पीपल, चंद्रोदय रसायन, पाला, संखिया, सर्पविष, आत्मशक्कियां, आदिसे व्यभिचार हो जायगा । जो कि तुम वैशेषिकोंके यहां तैजसपदार्थ नहीं माने गये हैं। अर्थात् मिरच, संखिया, आदिक भी बडी बडी उष्णशक्तियों के कार्य करते हैं । पाला गिरनेसे बन, अरहर आदिके पक्ष ठिठुरकर दग्ध हो जाते हैं, किन्तु वे तैजस नहीं हैं।
ततो नासिद्धता हेतोः सिद्धसाध्यस्य बुध्यते । चाक्षुषत्वादितो ध्वाने नित्यत्वस्य यथैव हि ॥ ५३॥
स्वरूपासिद्ध हेत्वाभाससे साध्यकी सिद्धि नहीं हुयी समझी जाती है। प्रकरणमें तिस कारण रूप आदिकोंके सन्निहित होनेपर रूपकी ही अभिव्यक्ति करनेवालापन हेतुसे चक्षुमें तैजसपना सिद्ध नहीं हुआ और तैजसपना हेतुकी असिद्धि हो जानेसे किरणसहितपन साध्यकी सिद्धि नहीं समझी जायगी । असिद्ध हेतुओंसे साध्यकी सिद्धि नहीं हुआ करती है। जिस ही प्रकार कि शब्दमें