Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्त्वार्यश्लोकवार्तिके
तत्र किमिदं श्रुतमित्याह ।
उस सूत्रके उद्देश्यदलमें पडा हुआ यह श्रुत क्या पदार्थ है ! इस प्रकार जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य उत्तर कहते हैं ।
श्रुतेऽनेकार्थतासिद्धे ज्ञानमित्यनुवर्तनात् । श्रवणं हि श्रुतज्ञानं न पुनः शब्दमात्रकम् ॥२॥
श्रुत शब्दके अनेक अर्थ है । शास्त्र, निीत अर्थ, सुना गया शब्द, आदि कतिपय अर्थ सहितपना सिद्ध होते हुये भी " मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलानि ज्ञानम् " इस सूत्रसे ज्ञानम् शद्वकी अनुवृत्ति चली आनेके कारण भावरूप श्रवणद्वारा निर्वचन किया गया श्रुतका अर्थ श्रुतज्ञान है । किन्तु फिर कानोंसे सुना गया केवल शब्द ही श्रुत नहीं है । अर्थात् - " श्रवणं श्रुतं " इस प्रकार भावमें क्त प्रत्यय कर व्युत्पन्न करा दिया गया श्रुतपद तो ज्ञानम्की अनुवृत्ति होनेसे रूढिके अधीन होता हुआ किसी विशेषज्ञानको कह रहा है। हां, वाच्योंके प्रतिपादक शब्द भी श्रुतपदसे पकडे जाते हैं । किन्तु केवल शद्बोंमें ही श्रुतपदको परिपूर्ण नहीं कर देना चाहिये ।
कयमेवं शद्वात्मकं श्रुतमिह प्रसिद्ध सिद्धान्तविदामित्याह ।
कोई पूछता है कि विशेषज्ञानको यदि श्रुत कहा जाता है तो इस प्रकार स्याद्वाद सिद्धान्तको जाननेवाले विद्वानोंके यहां इस प्रकरणमें शब्द आत्मक श्रुत भला कैसे पकडा जा सकता है ! जो कि स्याद्वादियोंके यहां शद्वमय द्वादशाङ्ग-श्रुत प्रसिद्ध है । श्रुतपदसे ज्ञानको पकडनेपर तो शद छूट जाते हैं । और शब्दको ग्रहण करनेपर ज्ञान छूट जाता है। दोनोंका ग्रहण करना तो शद्वशक्तिसे कष्टसाध्य है । इस प्रकार प्रश्न होनेपर आचार्य महाराज उत्तर कहते हैं कि
तचोपचारतो ग्राह्यं श्रुतशप्रयोगतः ।
शद्वभेदप्रभेदोक्तः स्वयं तत्कारणत्वतः ॥३॥
सूत्रकार गुरुवर्यने स्वयं गम्भीर श्रुतशब्दका प्रयोग किया है । इससे सिद्ध है कि मुख्यरूपसे श्रुतका अर्थ श्रुतझन है । और उपचारसे वह शब्द आत्मक श्रुत भी श्रुतशब्द करके ग्रहण करने योग्य है। तभी तो शोंके होनेवाले दो भेद और अनेक या बारह प्रभेद भगवान् सूत्रकारने स्वयं कह दिये हैं । यदि ज्ञानका ही प्रहण इष्ट होता तो शबके होनेवाले भेद प्रभेदोंका वचन नहीं किया गया होता । अतः उपचारसे शब्द आत्मक श्रुत भी अवश्य ग्राह्य है । निमित्त और प्रयोजनके विना उपचार नहीं प्रवर्तत्ता है । अतः यहां उस श्रुतबानके कारण हो रहे शब्दको ही श्रुत कह