Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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तत्वार्थ लोकवार्तिके
ओंको भी वेदके कर्ताका स्मरण नहीं होता है । आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार तो मीमांसकोंको नहीं कहना चाहिये । क्योंकि सभी मनुष्योंको वेदके कर्ताकी स्मृति हो जानेका प्रतिषेध नहीं हो रहा है। यानी बहुतसे विचारशील मनुष्य वेदके कर्ताका स्मरण कर रहे हैं। कणाद मतके अनुयायी वैशेषिक तो उस वेदके ( खतंत्र कर्ता ) कारण ब्रह्माको स्मरणकर आराधते हैं, और जैन जन वेदके कर्ता कालासुरको स्मरण करते हैं । सम्पूर्ण बौद्धोंके यहां अपने अपने अंशोंको बनानेवाले आठ विद्वानों ( अष्टक ) को वेदका कर्ता माना गया है । यह सब अपने अपने ऋषियोंकी आम्नायसे चले आये शास्त्र प्रवाह अनुसार वेदकर्ताओंका कुछको छोडकर सभी जीवोंको सदा स्मरण हो रहा है । अतः कर्ताका अस्मरण होना वेद या अन्य शद्वोंको नित्यपना सिद्ध करनेके लिये उपयोगी नहीं है ।
सवें स्वसंप्रदायस्याविच्छेदेनाविगानतः । नानाकर्तृस्मृतेनास्ति तासां कर्तेत्यसंगतं ॥ ३८॥ बहुकर्तृकतासिद्धेः खंडशस्ताहगन्यवत् ।
मीमांसक कहते हैं कि वैशेषिक, जैन, बौद्ध आदि वेदकर्ता वादी सभी विद्वान् अपनी अपनी सर्वज्ञमूलक ऋषिसम्प्रदायका मध्यमें विच्छेद नहीं होनेके कारण अनिन्दितरूपसे चतुर्मुख, कालासुर, अष्टक आदिक, अनेक कर्ताओंका स्मरण करते हैं । अतः प्रतीत होता है कि वेदका कर्ता कोई नहीं है । तभी तो निर्णीतरूपसे एक कर्ताका ज्ञान नहीं हो पाता है। जैसे कि महाभारत ग्रन्थके कर्ता एक ही व्यासका सबको स्मरण होता है, रत्नकरण्ड श्रावकाचारके का स्वामी श्री समन्तभद्रका सब स्मरण करते हैं । यदि वेदका भी कोई कर्ता होता तो एक ही विद्वान् होकर स्मृत किया जाता । किन्तु यहां कोई किसीको और कोई अन्यको कर्ता स्मरण कर रहे हैं । अतः वेदका कोई कर्ता नहीं है । अथवा सभी जीवोंको वेदश्रुतिओंके अपनी अपनी गुरु सम्प्रदायके न टूट जानेसे ही निर्दोषरूपसे अनेक कर्त्ताओंकी स्मृति होती है। अतः उन श्रुतिओंका कोई कर्ता नहीं । आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार मीमांसकोंका कहना तो असंगत है । क्योंकि मिन मिन शाखाओं के खण्डरूपसे अनेक कर्ताओंकी स्मृति हो जानेसे वेदका बहुत कर्ताओं करके बनाया गयापन सिद्ध हो जाता है । जैसे कि तिस प्रकारके अन्य शास्त्र कोई कोई अनेक विद्वानोंके बनाये हुये है। महापुराणको दो आचार्योने बनाया है। कादम्बरीको बनानेवाले बाण, शंकर, आदि कर्ताओंके विषयमें अभीतक विवाद पडा है । एतावता कादम्बरीको भी अपौरुषेय नहीं कहा जाता है। मीमांसक भी कादम्बरीको अनित्य और पौरुषेय मानते हैं।
कर्तुरस्मरणं हेतुर्याज्ञिकानां यदीष्यते ॥ ३९ ॥ तदा स्वगृहमान्या स्याद्वेदस्यापौरुषेयता ।